क्रूस का संदेश (23) विश्वास का अंगीकार करने के बावजूद भी बिना उद्धार पाए लोग (2) Message of cross (23) People without Salvation despite Their Confession of Faith (2)
हर कोई जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा” (मत्ती 7ः21)।
“ पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है। इस के विषय में मैं बिनती करने के लिये नहीं कहता” (1 यूहन्ना 5ः16)।
जब लोग प्रभु को स्वीकार करते है, तो सच्चा उद्धार प्राप्त करने और स्वर्ग में प्रवेश करने का अंतिम लक्ष्य निर्धारित करते है। अगर वे कहते हैं, “प्रभु! प्रभु ! लेकिन वे स्वर्ग में प्रवेश न कर पाए, तो यह कितना दयनीय होगा। आइऐं उन कुछ मामलों पर एक नजर डालते हैं जिनमें विश्वास के अपने अंगीकार के बावजूद भी, लोग उद्धार को प्राप्त नहीं कर पाएंगे और स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर पाऐंगें ।
पहला मामला: पवित्र आत्मा के विरूद्ध में बोलना और हस्तक्षेप करना और उसकी निंदा करना।
पवित्र आत्मा के विरूद्ध में बोलना और हस्तक्षेप करना और उसकी निंदा करना परमेश्वर के कार्याे के विरूद्ध में बोलना और कार्य प्रदर्षित करने की ओर दर्शाता है (मत्ती 12ः31-32 , मरकुस 3ः20-30, लूका 12ः10) । अविश्वासियों द्वारा चर्च के उत्पीड़न के विपरीत, जो परमेश्वर को नहीं जानते हैं, ये शब्द और कार्य ऐसे लोगों से आते हैं जो परमेश्वर में विश्वास रखने का दावा करते है और सच्चाई जानते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए कोई उद्धार नहीं है क्योंकि वे जानबूझकर बुराई करने के द्वारा परमेश्वर के कार्यों का विरोध करते हैं।
परमेश्वर की सामर्थ द्वारा दुष्ट आत्माओं को निकाला जाना और निर्बलता और बिमारियों से चंगाई का अनुभव करने के बाद, अगर कोई व्यक्ति अभी भी पवित्र आत्मा के विरूद्ध में बोलता है और हस्तक्षेप करता है और उसकी निंदा करता है, तथा ऐसे कार्याे को शैतान के कार्य बताता है, तो उसे संभवतः परमेश्वर की संतान कैसे समझा जा सकता है? परमेश्वर के ऐसे कार्य को देखने पर जिसे मनुष्य की क्षमता के द्वारा कल्पना भी नहीं किया जा सकता है, एक भले हृदय वाला व्यक्ति धन्यवाद देने और परमेश्वर की महिमा करने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है।
इसके बजाय, दुष्ट लोग जल्द ही पवित्र आत्मा के कामों से इनकार करते है और परमेश्वर का विरोध करते है। दुष्ट आत्माओं के पास लोगों के रोगों या दुर्बलताओं को चंगा करने की सामर्थ नहीं है। कोई रास्ता नहीं है कि वे लोगों में दुष्ट आत्माओं को बाहर निकाले और बीमारों को चंगा करके परमेश्वर की महिमा करने की अनुमति दें। ईशनिंदा से संबंधित सलाह देना भी परमेश्वर के सेवकों की सेवकाई के साथ हस्तक्षेप करने से संबंधित है जो उसकी सामर्थ को प्रकट करते हैं। इस तरह की दखल सीधे परमेश्वर का विरोध करने के समान है क्योंकि वे केवल परमेश्वर के जन के साथ-साथ पवित्र आत्मा के कार्यों को नकारने का काम करते हैं।
निर्गमन के दौरान जब इस्राएलियों के पास खाने के लिए कुछ नहीं था, तो उन्होंने सारा दोष मूसा और हारून पर लगाया और उनके खिलाफ बुड़बुड़ाने लगें। मूसा ने उनसे कहा, “क्योंकि यहोवा ने तुम्हारे मन की बात सुनी है। और हम क्या हैं? तुम्हारा बुड़बुड़ाना हमारे खिलाफ नहीं, बल्कि यहोवा के खिलाफ हैं” (निर्गमन 16ः8)। पे्र्ररितो के काम अध्याय 5 के पहले पाँच पदो में अनन्या और उसकी पत्नी सफीरा की कहानी है। उन्होंने अपनी संपत्ति का एक टुकड़ा बेचने और परमेश्वर को मुनाफा देने की वाचा खाई थी। अपने लालच में, हालांकि, उन्होंने अपने लिए कुछ मुनाफे को रखा और पतरस को मुनाफे का केवल एक हिस्सा दिया। उन्होंने नाटक किया कि वे सब दे रहे है जो उन्होंने प्राप्त किया था। चूँकि पति पत्नी ने पतरस को नहीं बल्कि पवित्र आत्मा को धोखा दिया था और स्वयं परमेश्वर से झूठ बोला था, उन्हें पश्चाताप करने का अवसर दिए बिना मृत्यु का सामना करना पड़ा (प्रेरितों के काम 5ः1-11)।
दूसरा मामला:- परमेश्वर के पुत्र को फिर से क्रूस पर चढ़ाकर सबके सामने लज्जित करना ।
हम इब्रानियों 6ः4-6 में पढ़ते हैं, क्योंकि जिन्होंने एक बार ज्योति पाई है, जो स्वर्गीय वरदान का स्वाद चख चुके हैं और पवित्र आत्मा के भागी हो गए हैं और परमेश्वर के उत्तम वचन का और आने वाले युग की सामर्थों का स्वाद चख चुके हैं। यदि वे भटक जाएं तो उन्हें मन फिराव के लिये फिर नया बनाना अनहोना है क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र को अपने लिये फिर क्रूस पर चढ़ाते हैं और प्रगट में उस पर कलंक लगाते हैं। ये पद ऐसे लोगों को संदर्भित करते हैं, जिन्होंने पवित्र आत्मा प्राप्त करने, परमेश्वर के अनुग्रह का अनुभव करने, स्वर्ग और नर्क के अस्तित्व को सीखने के बावजूद, और सत्य के वचन में विश्वास किया, फिर भी प्रलोभित हो जाते हैं, परमेश्वर को छोड़ देते हैं, संसार की ओर मुड़ जाते है और खुले तौर पर परमेश्वर की महिमा को प्रकट होने पर रोकने के लिए कार्य करते है।
हालाँकि, शैतान उन सभी लोगों के खिलाफ और भी अधिक मजबूती से काम करेगा जो पवित्र आत्मा के कार्य के बीच में परमेश्वर के अनुग्रह को अनुभव करने के बाद भी संसार में वापस चले जाते हैं क्योंकि उनमें अंधकार और भी अधिक होगा। वे अविश्वासियों की तुलना में अधिक बुराई को करंेगें, जो अनुग्रह उन्होंने एक बार प्राप्त किया था उसका इनकार कर देंगे, और यहां तक कि चर्च और विश्वासियों के उत्पीड़न का भी नेतृत्व करेंगें। जो लोग प्रगट में हमारे प्रभु पर कलंक लगाते है वे पश्चाताप की आत्मा को प्राप्त नहीं कर पाएंगे, इसलिए वे अंततः मृत्यु की ओर पहुंच जाएंगे।
केवल यहूदा इस्करियोती के बारे में सोचिए, जो एक समय पर यीशु के चंेलों में से एक था। वह यीशु की सेवकाई का पहला गवाह था, लेकिन उसने अपने हित के लिए, यीशु को चांदी के 30 टुकड़ों के लिए धोखा दे दिया। जाहिर तौर पर, अपने पश्चाताप और पछतावे से उबरने में असमर्थ, यहूदा ने जो कुछ भी किया था, उसका पछतावा करने का अवसर न होने पर आत्महत्या कर ली।
तीसरा मामला:- सत्य का ज्ञान प्राप्त करने के बाद जानबूझकर पाप करना।
इब्रानियों 10ः26-27 हमें बताता है, क्योंकि सच्चाई की पहचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान बूझ कर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हां, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना और आग का ज्वलन बाकी है जो विरोधियों को भस्म कर देगा। यह मार्ग विशेष रूप से उन लोगों की ओर इशारा करता है जो सत्य को जानते और मानते हैं लेकिन उन पापों के लिए प्रतिबद्ध रहते हैं जिनके खिलाफ परमेश्वर ने हमें चेतावनी दी है।
जैसा कि 2 पतरस 2ः21-22 हमें याद दिलाता है, क्योंकि धर्म के मार्ग में न जानना ही उन के लिये इस से भला होता, कि उसे जान कर, उस पवित्र आज्ञा से फिर जाते, जो उन्हें सौंपी गई थी। उन पर यह कहावत ठीक बैठती है, कि कुत्ता अपनी छांट की ओर और धोई हुई सुअरनी कीचड़ में लोटने के लिये फिर चली जाती है’’ जो लोग जानबूझकर पाप करते हैं, वे जानते हैं कि उन्होंने पाप किया है। वे पश्चाताप करते हैं जो भी उन्होंने किया है, लेकिन वे फिर पापमय जीवन की ओर चले जाते हैं।
एक समय था जब राजा दाउद को कुछ समय के लिए परीक्षा मे डाला गया क्योंकि उसने हत्या का भीषण पाप किया था। जब एक भविष्यवक्ता ने उसके पाप को इंकित किया, तो राजा दाउद ने जल्द ही पश्चाताप किया और अपने मार्गो से फिर गया। जब वह अपने पाप के कारण परीक्षा में था, तो दाउद उन्हें नम्रता के साथ पार कर पाया। जिसके द्वारा वह अपने हृदय से पापमय जडों को बाहर निकालने पाया और परमेश्वर की नजर में सिद्ध होने के लिए सक्षम हुआ। हालाँकि, राजा शाऊल की कहानी बिल्कुल अलग थी। यहां तक कि जब भविष्यवक्ता षमूएल ने आकर उसे उसके गलत कामों की याद दिलाई, तो राजा शाऊल ने केवल बहाना बनाया और पश्चाताप नहीं किया।
यह आज भी सच है। यदि कोई व्यक्ति जो अपने विश्वास को स्वीकार करता है और सच्चाई जानता है, वह पाप करता है, तो उसे अपने हृदय में पश्चाताप करना चाहिए, ज्योति में चलना चाहिए, और अच्छे फलों को उत्पन्न करना चाहिए क्योंकि पवित्र आत्मा स्वयं उसके लिए आहें भर भर कर विनती करता है और उसे उसके पापों के बारे मे याद दिलाता है। जब वह जानबूझकर पाप करता है, हालांकि, परमेश्वर अपना चेहरा उससे दूर कर लेगा और इस तरह की घटना में, व्यक्ति पश्चाताप की आत्मा को प्राप्त करने में सक्षम नहीं होगा और पवित्र आत्मा (1 थिस्सलुनीकियों 5ः19) उसमें से बुझ जाएगा।
मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, हालाँकि आपका नाम जीवन की पुस्तक में तब दर्ज किया गया था जब आपने प्रभु को स्वीकार किया था, अगर आप परमेश्वर के सामने पश्चाताप नहीं करते और पापों की दीवार को नष्ट नहीं करते, तो आपका नाम जीवन की पुस्तक से काट दिया जाएगा (प्रकाशितवाक्य 3ः5)।
इसके अलावा, भले ही हमने जो गलत काम किया है, वह मृत्यु की ओर ले जाने वाले पाप नही है, इसे दूर किए बिना और इसके लिए पश्चाताप किए बिना हम कभी भी पवित्र आत्मा से भरे नहीं रहेंगें, यहां तक कि शैतान द्वारा प्रलोभित हो सकते है और ऐसे पापों को कर सकते है जो मृत्यु की ओर ले जाते है। इसलिए, मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप लहु बहाने के बिंन्दु तक पापों से संघर्ष करेंगे और हर प्रकार की बुराई से छुटकारा पाऐंगें (इब्रानियों 12ः4-1, थिस्सलुनीकियों 5ः22)।
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