धन्य हैं वे जो नम्र हैं क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे । धन्यवचन (3)
धन्य हैं वे जो नम्र हैं

धन्य हैं वे जो नम्र हैं क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। मत्ती 5ः5

सीनियर पास्टर रेव. जेरॉक ली


परमेश्वर जिस नम्रता को पहचानता है, वह केवल चरित्र में नरम होना नहीं है। यह एक विषाल हृदय होने को संदर्भित करता है जो बहुत से लोगों को ग्रहण कर सकता है। अब, परमेश्वर द्वारा स्वीकार की गई नम्रता को जोतने के लिए हमें क्या करना होगा ?

  1. तीसरी सच्ची आशीषः नम्रता

1) बहुत से लोगों को ग्रहण करने की भली सज्जनता।

जो नम्र है वह उन्हें ग्रहण कर सकता है जो उससे बहुत अलग हैं ऐसा व्यक्ति किसी भी मामले में अपनी बुराई के साथ न्याय नहीं करेगा। वह दूसरों को उनके दृष्टिकोण से समझता है। वह नम्रता से उनकी सेवा करता है और रूई के समान उसका हृदय कोमल होता है।

यधपि जो लोग बुरे काम करते हैं, उन्हें भी वह त्यागेगा नहीं वरन वह उन्हें सहन करेगा और तब तक उनकी मदद करेगा जब तक कि वह बदल नहीं जाते ताकि वे बेहतर कर सकें। उसकी बोलने की आवाज तेज नहीं बल्कि कोमल और नम्र होगी। वह बहुत सी निरर्थक बातें नहीं कहेंगा, लेकिन केवल सत्य के ही शब्द बोलेगा जो आवश्यक हैं।

साथ ही, उन लोगों के लिए भी जो उससे घृणा करते हैं और उसे श्राप देते हैं, वह उनके प्रति कठोर भावना नहीं रखता या नाराज नहीं होता। जब उसे सलाह या ताडना मिलती है, तो वह उन्हें स्वीकार करता है और खुद को सुधारता है। उसे किसी से कोई परेशानी नहीं होती लेकिन वह उनकी कमियों को समझता है और उन्हें स्वीकार करता है ताकि वह बहुत से लोंगो का हृदय जीत सके।

2) अच्छी भूमि बनाने के लिए हृदय-भूमि की जुताई करें।

मत्ती 13 अध्याय में यीशु ने मनुष्यों के हृदय की तुलना 4 प्रकार की भूमि से की है।

मार्ग के किनारे की सख्त भूमि, इसलिए वहां बीज अंकुरित नहीं हो सकते। जिनके पास ऐसा हृदय है, वे परमेश्वर का वचन सुनकर भी विश्वास नहीं कर सकते। वे जिद्दी और बंद हृदय वाले हैं, इसलिए वे परमेश्वर से नहीं मिल सकते। यदि वे चर्च जाते भी हैं, तो वे सिर्फ चर्च जाने वाले होते हैं। वचन उनमें जड़ नहीं पकड़ता, और इस प्रकार उनका विश्वास नहीं बढ़ता।

पथरीली भूमि में बीज अंकुरित तो हो सकते हैं लेकिन चट्टानों के कारण अच्छी तरह नहीं बढ पाते। जिनके पास ऐसा हृदय है, उनके पास परमेश्वर का वचन सुनने पर भी विश्वास का आश्वासन नहीं है। इसलिए, वे प्रलोभनों में पड़ जाते हैं। वो मार्ग के किनारे से बेहतर हैं, लेकिन उनका हृदय अभी तक सत्य के साथ जुता नहीं है, इसलिए वो वचनों का अभ्यास नहीं कर सकते।

कंटीली भूमि में बीज कुछ हद तक उग सकते हैं लेकिन कांटों के कारण फल नहीं दे सकते। जिनके पास ऐसा हृदय है, उन्हें संसार की चिंता और उनके अपने विचार और योजनाएं हैं, इसलिए वे परमेश्वर के सामर्थ का अनुभव नहीं कर सकते हैं।

अच्छी भूमि में बीज अच्छी तरह से बढ सकते हैं और प्रचुर मात्रा में फल उत्पन्न कर सकते हैं। जिनके पास ऐसा हृदय है वो परमेष्वर के वचनों का पालन करते हैं और सभी मामलों में बहुतायत से फलों की कटनी कर सकते हैं। लोगों के हृदय में उपरोक्त 4 प्रकार कीे भूमि का मिश्रण होता है। उनके पास मार्ग के किनारे की भूमि और पत्थरीली भूमि या अच्छी भूमि और पत्थरीली भूमि के साथ मिश्रण हो सकते हैं।

इसलिए महत्वपूर्ण बात यह नहीं है कि उनके पास अभी किस तरह का हृदय है, बल्कि यह है कि वे कितनी मेहनत से अपने हृदय की भूमि को जोत रहे हैं। पाप और बुराई को दूर करने से कोई भी अच्छी भूमि प्राप्त कर सकता है।

3) विश्वास के साथ प्रार्थना से बुराई को निकाल फेंके।

हृदय भूमि को जोतने के लिए, सबसे बढ़कर, आत्मा और सच्चाई से आराधना करनी चाहिए ताकि वो परमेश्वर के वचन को समझ सकें। मुष्किलों में भी आनन्दित होना चाहिए, निरंतर प्रार्थना करना चाहिए, और हृदय से बुराई को दूर करने की कोशिश करते हुए सभी चीजों में धन्यवाद देना चाहिए।

उनको वचन का अभ्यास करते समय उत्सुक प्रार्थनाओं के माध्यम से परमेश्वर की सामर्थ को मांगना है। तब, वह परमेश्वर का अनुग्रह और सामर्थ और पापों को दूर करने के लिए पवित्र आत्मा की सहायता प्राप्त कर सकते है। अगर हमारे पास अच्छी भूमि है, अगर हम बीज नहीं बोते हैं और उनकी देखभाल नहीं करते हैं, तो हमारे पास फसल नहीं होगी। इसी तरह, अंत तक विश्वास के साथ प्रार्थना करना महत्वपूर्ण है।

विश्वास उन चीजों का सार है जो दिखाई नहीं देती हैं (इब्रानियों 11ः1), और यदि हम लगातार परमेश्वर में विश्वास के साथ प्रार्थना करते हैं इस प्रकार, हम एक अच्छी फसल प्राप्त कर सकते हैं। हम महसूस कर सकते हैं कि हमने एक निश्चित बिंदु तक बुराई को दूर कर दिया है और फिर हम बाद में अपने हृदय में और अधिक बुराई पाते हैं। हालांकि, अगर हम अंत तक हार नहीं मानते हैं, तो हम अंततः एक पवित्र और नम्र हृदय जोतने में सक्षम होंगे।

  1. शारीरिक नम्रता और आत्मिक नम्रता।

वह जो शारीरिक अर्थों में नम्र है वह आम तौर पर शांत और व्यवहार में नम्र होता है, इसलिए वह किसी भी तेज आवाज या लडाई को नहीं सुनना चाहेगा। हालाँकि, जब वह असत्य की चीजें देखता है तब भी वह संदेहषील हो सकता है या असुविधाजनक चीजों को देखकर चुप हो जाता है।

हो सकता है कि वह अंदर ही अंदर पीडा में रहे और जब वह अपनी सीमा से परे चला जाए तो गुस्सा हो जाता है। उसे अपने कर्तव्य को पूरी तरह से पूरा करने का उत्साह नहीं होगा, इसलिए वह अच्छे फल उत्पन्न नहीं कर सकता। इसलिए, ऐसे व्यक्ति को परमेश्वर एक नम्र व्यक्ति के रूप में नहीं पहचान सकता।

इसके विपरीत, जिसने असत्य को दूर करके आत्मिक रूप से नम्र हृदय को जोत लिया है, वह जागृति और सुसमाचार प्रचार में बहुत से फल उत्पन्न कर सकता है। साथ ही, वह आत्मिक फल जैसे ज्योति का फल (इफिसियों 5:9), आत्मिक प्रेम (1 कुरिं. 13), और आत्मा के फल (गलातियों 5:22-23) को प्राप्त कर सकता है। क्योंकि वह एक आत्मा का जन है, उसे अपनी प्रार्थनाओं का उत्तर बहुत जल्दी मिल जाता है।

सबसे बढ़कर, वह सत्य के भीतर साहसी और मजबूत हो सकता है। वह सत्य को दृढता से सिखाता है। ऐसी आत्माएं जो परमेश्वर के सामने गंभीर पाप करती हैं, तो वह उन्हें प्रेम से डांट सकता है कि वे अपने मार्गों से मन फिरायें। (मत्ती 12:34, 23:13-35, लूका 11:42-44, यूहन्ना 2:14-16)

1 कुरिन्थियों अध्याय 13 में जो नम्रता है वह सबसे बुनियादी नम्रता है जिसकी जरूरत आत्मिक प्रेम को जोतने के लिए है, जबकि आत्मा के नौ फलों में नम्रता सभी प्रकार के मामलों में नम्र होना है। धन्यवचन में नम्रता, नम्रता के फलों को उत्पन्न करने के द्वारा आशीषांे को नीचे लाना है। यह नम्रता का उच्चतम स्तर है।

  1. आत्मिक रूप से नम्र लोगों के लिए आशीषें।

मत्ती 5ः5 कहता है, धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वो पृथ्वी के अधिकारी होंगे। इसका अर्थ है, एक धर्मी व्यक्ति के रूप में, वे स्वर्ग के राज्य में भूमि के वारिस होंगे और वहाँ हमेशा के लिए रहेंगे (भजन 37ः29)।

परमेश्वर का नम्र लोगों को स्वर्ग में पृथ्वी देने का क्या कारण है? भजन संहिता 37ः11 कहता है, परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। जैसा कि कहा गया है, जो नम्र होते हैं उनमें भली सज्ज्नता होती है और वो बहुत से लोगों को ग्रहण कर सकते हैं।

जिनके पास आत्मिक नम्रता है वे दूसरे लोगों की गलतियों को क्षमा कर सकते हैं, उन्हें समझ सकते हैं और ग्रहण कर सकते हैं। इस प्रकार, बहुत से लोग उनमें शांति और विश्राम पा सकते हैं। जिस प्रकार कोई व्यक्ति अनेक लोगों का हृदय जीतता है, यह आत्मिक अधिकार के द्वारा होता है। जैसे ही उसे स्वर्ग में महान अधिकार प्राप्त होता है, उसे भूमि भी मिलती है।

हम धन या प्रसिद्धि के माध्यम से सामाजिक सामर्थ प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन स्वर्ग में आत्मिक सामर्थ स्वयं को नम्र करने और दूसरों की सेवा करने से प्राप्त की जा सकती है (मत्ती 18:3-4, 20:26-28)।

जब किसी ने आत्मिक नम्रता के साथ बहुत से लोगों को अपने हृदय में ग्रहण किया, तो परमेश्वर उसे पृथ्वी का एक बड़ा टुकड़ा देते हैं जहां अधिकार का हमेशा आनंद लिया जा सकता है।

प्रिय भाइयों और बहनों, परमेश्वर हमेशा नम्र की तलाश में रहते हैं। यह उन्हें बहुत सी आत्माओं को ग्रहण करकेे सत्य की ओर ले जाने के लिए, और उन्हें स्वर्ग में पृथ्वी की विरासत देने के लिए है। होने पाऐं आप जल्दी से हृदय की पवित्रता को जोत सकें और नम्र बन सके हैं ताकि आप स्वर्ग के राज्य में पृथ्वी को प्राप्त कर सकें, मैं प्रभु के नाम से यह प्रार्थना करता हूं।

धन्यवचन 4 को पढ़ने के लिए यहां –  क्लिक करे

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