धन्य हैं वे जिन के मन शुद्ध हैं

धन्य हैं वे जिन के मन शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। धन्यवचन (6)

धन्य हैं वे, जिन के मन शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। मत्ती 5ः8 Blessed are the pure in heart, for they will see God.( matthew 5:8 )

कुछ लोग कहते हैं कि वे स्वर्ग जाएंगे क्योंकि उन्होंने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और एक अच्छा जीवन जिया। भले ही वे सोचते हैं कि वे एक अच्छा जीवन जीते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि वे परमेश्वर के वचनों की ज्योति में जो कि सत्य है, अधर्म और पापों से भरे हुए हैं (रोमियों 3ः10)।

भले ही वे दूसरों से घृणा करते हैं, वे सोच सकते हैं कि वे पाप रहित हैं, यदि उन्होंने उन लोगों को नुकसान नहीं पहुँचाया जिनसे वे घृणा करते हैं। तथापि, परमेश्वर कहते हैं कि घृणा को रखना ही पहले से ही पाप है (1 यूहन्ना 3ः15 मत्ती 5ः28)। यदि हमारे अंदर जरा सी भी घृणा, वासना, लोभ, अहंकार, झूठ, ईष्र्या, या क्रोध है, तो हम यह नहीं कह सकते कि हम मन के शुद्ध हैं।

जो सच में मन केे शुद्ध होते हैं, वे व्यर्थ की बातों में मन नहीं लगाते बल्कि हृदय से धर्मी मार्ग पर चलते हैं।

धन्य हैं वे जिन के मन शुद्ध हैं क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। धन्यवचन (6)

  1. मन के शुद्ध।

शुद्ध होने का अर्थ है कोई नैतिक असफलता या अपराधबोध न होना। बाइबल का अर्थ आत्मिक ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करना है, इसलिए व्यक्ति न केवल बाहरी रूप से एक धार्मिक तरीके से कार्य करता है बल्कि एक षुद्ध और पवित्र हृदय भी रखता है।

मत्ती 15 में, फरीसी और शास्त्री यीशु से उसके चेलों के हाथ न धोने के बारे में पूछते हैं। वे व्यवस्था और प्राचीनों की परंपराओं के अनुसार एक धार्मिक जीवन जीते थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि वे पवित्र हैं। उनका एक नियम था कि बिना हाथ धोए भोजन करना परमेश्वर के सामने शुद्ध नहीं है।

यीशु ने उन्हें उत्तर दिया, कि जो मनुष्य के मुंह में जाता है वह मनुष्य को अशुद्ध नहीं करता, परन्तु जो उसके मुंह से निकलता है, वह मनुष्य को अशुद्ध करता है। बाद में उसने मत्ती 23ः27 में उन लोगों को फटकार लगाई कहा कि , हे कपटी शास्त्रियों और फरीसियों, तुम पर हाय! क्योंकि तुम धुली हुई कब्रों के समान हो…

परमेश्वर चाहता है कि हमारा अंदरूनी हृदय सुंदर हो न कि केवल हमारा बाहरी दिखावा। इसलिए उसने 1 शमूएल में कहा 16ः7, .. क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है। उसने शमूएल को एक जवान चरवाहे दाऊद का अभिषेक करने दिया।

  1. शुद्ध हृदय कैसे प्राप्त करें?

परमेश्वर की इच्छा के अनुसार शुद्ध हृदय पाने के लिए हमें क्या करना होगा? क्रोध करने वालों को क्रोध को त्याग कर नम्र बनना चाहिए। जो लोग अहंकारी हैं उन्हें खुद को नम्र बनाना चाहिए और दूसरों की सेवा करनी चाहिए। नफरत करने वालों को अपना हृदय बदल लेना चाहिए ताकि वे अपने षत्रुओं से भी प्रेम कर सकें।

हमें उन सभी बुराईयों को दूर करना है जिनसे परमेश्वर घृणा करता है और पापों के विरुद्ध लहू बहाने तक संघर्ष करना है (1 थिस्स 5ः22, इब्रा. 12ः4)। हमारा हृदय उस हद तक शुद्ध हो सकता है, जब तक कि हम अपने भीतर के पापों और बुराई को समझ सकें और दूर कर सकें। हमें परमेश्वर के वचन का पालन करना है और अपने आप को सत्य से भरना है। निःसंदेह हृदय की पवित्रता केवल मनुष्य के प्रयासों से प्राप्त नहीं की जा सकती (रोमियों 7ः22-24)।

1 तिमुथियुस 4ः5 कहता है, क्योंकि वह परमेश्वर के वचन और प्रार्थना के द्वारा पवित्र किया जाता है। हमें परमेश्वर के वचन के माध्यम से सत्य का एहसास करना है और परमेश्वर का अनुग्रह, ताकत, और पवित्र आत्मा की मदद को जोषीली प्रार्थनाओं के माध्यम से प्राप्त करना है।

ऐसा करने के लिए, हमें परमेश्वर के वचन का अभ्यास करने के लिए अपने प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें इसे केवल एक या दो बार करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, बल्कि तब तक उपवास के साथ प्रार्थना करनी चाहिए जब तक कि हम वास्तव में बदल न जाएं। तब, हम अंततः सभी पापों को दूर कर सकते हैं और शुद्ध हृदय जोत सकते हैं।

जिनका हृदय साफ होता है वो धर्मी मार्ग पर चलते हैं। रूत नाम की एक अन्यजाति महिला बिना किसी संतान के कम उम्र में विधवा हो गई। उसकी सास ने उसे अपने परिवार में वापस लौट जाने का आग्रह किया, लेकिन उसने अपनी सास का अनुसरण किया (रूत 1ः16-17)। परिणामस्वरूप, रूत बोअज नाम के एक धनी और सज्जन व्यक्ति से मिली और उसके साथ एक सुखी परिवार बनाया। वह राजा दाऊद की परदादी बनी और उसका नाम यीशु की वंशावली में शामिल किया गया।

  1. शुद्ध हृदय वालों के लिए आशीषें।

मत्ती 5ः8 कहता है, धन्य हैं वे, जो मन के शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। हालाँकि, बाइबल के कई भाग कहते हैं कि मनुष्य परमेश्वर को नहीं देख सकते हैं और यदि वे उसे देखेंगे तो वे मर जाएंगे (यूहन्ना 1ः18, न्यायियों 13ः22)।

इसके विपरीत, निर्गमन 33ः11 कहता है, इस प्रकार यहोवा मूसा से आमने-सामने बातें किया करता था, जैसे मनुष्य अपने मित्र से बातें करता है। जब परमेश्वर ने सीनै पर्वत पर इस्राएल के लोगों के लिए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई वे मारे जाने के डर से पर्वत के पास नहीं जा सके। परन्तु मूसा ने परमेश्वर को निकट से देखा (निर्गमन 20ः18-19)। इसके अलावा, उत्पत्ति 5ः21-24 हमें बताता है कि हनोक परमेश्वर के साथ-साथ चला। उसने हर समय परमेश्वर के साथ संवाद किया और परमेश्वर ने उसके जीवन में हर चीज का ख्याल रखा।

हमें समझना चाहिए कि परमेश्वर के साथ चलना और होना दो अलग-अलग चीजें हैं। परमेश्वर के साथ रहने के लिए उनके स्वर्गदूतों द्वारा सुरक्षित किया जाना है। जब हम वचन के अनुसार जीने की कोशिश करते हैं तो वह हमारी सुरक्षा करता है, लेकिन परमेश्वर हमारे साथ चलता है यदि हम पापों को पूरी तरह से दूर कर देते हैं और हनोक की तरह हृदय की पवित्रता साध लेते हैं।

ऐसा क्यों है कि कुछ लोग परमेश्वर को नहीं देख सकते हैं जबकि अन्य लोग परमेश्वर को आमने-सामने देखते हैं या उनके साथ चलते हैं? 3 यूहन्ना 1ः11 कहता है, हे प्रियों, बुराई का नहीं परन्तु भलाई का अनुसरण करो। जो भलाई करता है, वह परमेश्वर की ओर से है, और जो बुराई करता है, उस ने परमेश्वर को नहीं देखा। शुद्ध मन वाले लोग परमेश्वर को देख सकते हैं, लेकिन अगर हृदय अशुद्ध है तो परमेश्वर को नहीं देखा जा सकता है।

प्रेरितों के काम 7 में स्तिफनुस का हृदय इतना शुद्ध था कि उसने उन लोगों के लिए प्रार्थना की जो उसे पत्थरवाह कर मार रहे थे क्योंकि वह सुसमाचार का प्रचार कर रहा था। परमेश्वर ने उसे परमेश्वर की महिमा और परमेश्वर के दाहिने हाथ पर खड़े प्रभु को देखने के लिए आशीषित किया।

हर कोई स्वर्ग में प्रभु और पिता परमेश्वर को करीब से नहीं देख सकता है। हर किसी के पास अलग-अलग आत्मिक तेज होता है और जिस हद तक उन्होंने पवित्रता की जुताई की है, उसके अनुसार अलग-अलग निवास स्थान हैं।

शुद्ध हृदय की आशीषें केवल पिता परमेश्वर के स्वरूप को देखने में सक्षम होना नहीं है। इसमें प्रार्थनाओं के उत्तर प्राप्त करना और उससे मिलना और उसका अनुभव करना शामिल है। प्रार्थनाओं में गंभीरता से पुकारने के द्वारा, वे उत्तर प्राप्त करते हैं और उनके दैनिक जीवन में उनकी गवाही होगी (यिर्मयाह 29ः12-13)।

कुछ नए विश्वासी अपनी प्रार्थनाओं के उत्तर प्राप्त करते हैं, भले ही वे वास्तव में सत्य में नहीं जी रहे हों। वे अपने हृदय की इच्छाओं के उत्तर प्राप्त करते हैं क्योंकि वे अपने विश्वास के परिमाण के भीतर परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, हालांकि वे हृदय में पूरी तरह से शुद्ध नहीं हैं।

साथ ही, कभी-कभी हम पवित्र आत्मा के विभिन्न दान प्राप्त करते हैं और जीवित परमेश्वर का अनुभव करते हैं। ये सब बातें हैं परमेश्वर को अंशतः देखना है (1 कुरिं. 12ः4-11)।

अगर हम परमेश्वर से प्रेम करते हैं, तो हमें बच्चों के विश्वास के स्तर पर नहीं रहना चाहिए। हमें अपने हृदय से बुराई को दूर करने और पवित्रता की जुताई करने का भरसक प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने में, हमें परमेश्वर के परिपक्व संतान होना चाहिए जो उसके हृदय को समझते हैं।

मसीह में, प्रिय भाइयों और बहनों, मुझे आशा है कि आप शुद्ध हृदय जोतेंगे और परमेश्वर की आशीषें प्राप्त करेंगे। पवित्रता की जुताई करने के लिए सभी पापों, बुराई और हृदय की गंदगी को दूर करें। फिर, आप प्रार्थना में जो कुछ भी मांगते हैं उसे प्राप्त कर सकते हैं और सभी चीजों में समृद्ध हो सकते हैं। मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा करने से आप नए यरूशलेम तक पहुँचेगे जहाँ आप परमेश्वर को आमने सामने देख सकते हो।

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