धन्य हैं वे जो शोक करते हैं , क्योंकि वे शांति पाएंगे। धन्यवचन (2)

धन्य हैं वे जो शोक करते हैं

सीनियर पास्टर रेव. जेरॉक ली

धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएंगे। मत्ती 5ः4

ऐसे कई लोग हैं जो आर्थिक तंगी या बीमारियों के दर्द से पीड़ित हैं। कुछ का हृदय टूट जाता है क्योंकि चीजें वैसी नहीं होती जैसी उन्होंने योजना बनाई थी। कुछ अन्य लोग पीडादायक आंसू बहाते हैं क्योंकि उन्हें दूसरों द्वारा धोखा दिया जाता है।

लेकिन व्यक्तिगत कारणों से शोक परमेश्वर की इच्छा के अनुसार नहीं है। यह अपनी ही बुराई और भावनाओं से आने वाला शारीरिक शोक है, और इन लोगों को परमेश्वर द्वारा षांति नहीं दी जा सकती है। इसके विपरीत, जो विश्वास रखते हैं वो हमेशा प्रभु में आनन्दित हो सकते हैं।

कुछ लोग पूछ सकते हैं कि जब वे कठिनाइयों से गुजर रहे होते हैं तो कैसे वो आनन्दित हो सकते हैं। हालाँकि, परमेश्वर की संतानों ने उद्धार और स्वर्ग के राज्य की प्रतिज्ञा प्राप्त की है, और इसीलिए वो आनन्दित हो सकते हैं और धन्यवाद दे सकते हैं। साथ ही, उनका मानना है कि, यदि वे विश्वास के साथ प्रार्थना करते हैं, तो परमेश्वर सभी चीजों में भलाई के लिए कार्य करेगा।

परमेश्वर जो चाहता है, वह है, आत्मिक शोक। मत्ती 5ः4 कहता है, धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएंगे। यहाँ शोक परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता के लिए होना चाहिए। अब, आइए देखें कि आत्मिक शोक क्या है।

धन्य हैं वे जो शोक करते हैं , क्योंकि वे शांति पाएंगे। धन्यवचन (2)

  1. सच्ची आशीषों का दूसरा मार्ग: वे जो शोक करते हैं।

1) पश्चाताप का शोक

जब हम यीशु मसीह में विश्वास करते हैं और उसे अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करते हैं, तो हम पवित्र आत्मा की सहायता से अपने हृदय में महसूस करते हैं कि वह हमारे पापों के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया था। जब हम उसके प्रेम को महसूस करते हैं, तो हम बड़े पश्चाताप के साथ आंसू बहाते हैं।

पश्चाताप करना पापमय मार्गों से पूरी तरह से फिरना और परमेश्वर के वचन के अनुसार जीना है। यदि हम पश्चाताप में शोक करतेे हैं, तो पापों का बोझ हट जाएगा, और हम उमडते हुए आनंद का अनुभव करेंगे।

हालाँकि, हम तब तक सिद्ध नहीं होते जब तक हम विश्वास के पूर्ण माप तक नहीं पहुँच जाते। इस बीच, हम पाप करते हैं और पश्चाताप के साथ शोक करते हैं। जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, वे बहुत से आंसुओं के साथ पश्चाताप करेंगे क्योंकि वे परमेश्वर के सामने बहुत खेदित महसूस करते हैं। जब हमारे पास ऐसा शोक होता है तो पापों को दूर करने की ताकत को ऊपर से प्राप्त कर सकते है।

कुछ विश्वासी एक ही पाप को बार-बार करते हैं और बार-बार पश्चाताप करते हैं। या तो वे बदलने में धीमे हैं या वे बिल्कुल भी नहीं बदलते हैं। उन्हें लगता है कि वे पश्चाताप के साथ शोक करते हैं लेकिन वास्तव में वे इसे हृदय से नहीं करते हैं।

हमें केवल शब्दों के साथ शोक नहीं करना चाहिए बल्कि हमें पश्चाताप का फल उत्पन्न करना चाहिए (लूका 3ः8)। इसके अलावा, जैसे-जैसे हमारा विश्वास परिपक्व होता है और कलीसिया में एक अगुवे बन जाते है, हमें अब और पश्चाताप के साथ शोक नहीं करना चाहिए। इसका अर्थ है कि हमें पापों को त्याग देना चाहिए ताकि हमें शोक न करना पड़े।

जब हम अपने परमेष्वर के द्वारा दिए गए कर्तव्यों को नहीं करते हैं तो हम पश्चाताप के साथ शोक करते हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि हम पश्चाताप नहीं करते हैं तो यह परमेश्वर के विरुद्ध एक बाधा उत्पन्न कर सकता है और परमेश्वर हमारी सुरक्षा नहीं कर सकता है। परन्तु यदि हम पष्चाताप करें और हृदय से षोक करें, तो परमेश्वर का दिया हुआ आनन्द और शान्ति हम पर आएगी। हम अपने कर्तव्यों को करने के लिए आत्मविश्वास और ताकत भी प्राप्त करेंगे। यह शोक करने वालों को दी गई परमेश्वर की षांति है।

2) विश्वास में भाइयों के लिए शोक करना।

कभी-कभार, विश्वासी भाई पाप करते हैं और मृत्यु के मार्ग पर चले जाते हैं। जिनके पास दया वाला हृदय हैं वे अपना समझ कर उनके लिए षोक करेंगे। वे उनके लिए पश्चाताप करेंगे और प्रेम से प्रार्थना करेंगे ताकि वे सत्य के अनुसार कार्य कर सकें। ऐसा कार्य केवल आत्माओं के लिए प्रेम से ही संभव है। शोक की ऐसी प्रार्थनाओं से परमेश्वर प्रसन्न होते हैं और अपनी षांति देते हैं।

हालांकि, ऐसे विश्वासी भी हैं जो शोक के साथ प्रार्थना करने के बजाय न्याय करते हैं और अन्य लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं। वे दूसरे लोगों की गलतियों को फैलाते हैं। परमेश्वर की दृष्टि में ऐसे कार्य ठीक नहीं हैं। हमें दूसरों की गलती को ढंाप देना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए ताकि वे पाप न करें।

प्रेरितों के काम अध्याय 7 में, स्तिफनुस को यहूदियों द्वारा पत्थरवाह किया जा रहा था और फिर भी उसने उन लोगों के लिए प्रार्थना की जो उसे पत्थरवाह कर रहे थे (प्रेरितों 7ः59-60)। यीशु को सभी प्रकार के उपहास प्राप्त करने के लिए क्रूस पर चढ़ाया गया था, और उसने उन लोगों के लिए प्रार्थना की जो उसे क्रूस पर चढ़ा रहे थे (लूका 23ः34)। यह आत्माओं के लिए यीशु के महान और गहरे प्रेम को दर्शाता है।

यदि हम अन्य लोगों के पापों की क्षमा के लिए प्रार्थना कर सकें, तो यह परमेश्वर की दृष्टि में आनंददायक है।

3) आत्माओं को जीतने के लिए शोक।

परमेश्वर की संतानों को उन आत्माओं के प्रति प्रेम रखना चाहिए जो इस पापी संसार में विनाश के रास्ते पर जा रहे हैं। आज की पीढ़ी नूह की पीढ़ी जितनी ही दुष्ट या उससे भी अधिक दुष्ट है जिसे जलप्रलय और सदोम और अमोरा द्वारा दंडित किया गया था जिन्हें स्वर्ग से आग से दंडित किया गया था। हमें अपने परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के लिए शोक करना चाहिए जो अभी तक नहीं बचाए गए हैं। हमें अपने राष्ट्रों और चर्चों और परमेश्वर के राज्य में बाधा डालने वाली हर चीज के लिए शोक करना चाहिए।

प्रेरित पौलुस को हमेशा परमेश्वर के राज्य और आत्माओं के लिए चिंता और शोक था। सुसमाचार फैलाने के दौरान उसे बहुत सताया गया था। उसे जेल में डाल दिया गया। बल्कि, उसने परमेश्वर की स्तुति की (प्रेरितों के काम 16ः25)। परन्तु परमेश्वर के राज्य और आत्माओं के लिये वह सदा षोक करता रहा (प्रेरितों के काम 20ः31, 2 कुरि० 11ः28-29)।

जब विश्वासी परमेश्वर के वचन के अनुसार नहीं जीते हैं या जब चर्च परमेश्वर के नाम की महिमा करने में सक्षम नहीं होते हैं तो हमें शोक करना चाहिए। यदि हमें प्रभु के नाम के लिए सताया जाता है, तो हमें निराशा में नहीं पड़ना चाहिए कि यह कठिन है, लेकिन उन आत्माओं के लिए प्रार्थना और शोक करें जो हमें सता रहे हैं ।

इसके अलावा, जैसा कि हम देखते हैं कि अंधकार संसार को और अधिक तेजी से ढक रहा है, हमें अधिक गंभीरता से और अधिक शोक के साथ प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि परमेश्वर की महिमा प्रकट हो और बहुत सी आत्माओं को बचाया जा सके।

  1. आत्मिक शोक, आत्मिक प्रेम के कारण होता है।

यूहन्ना 6ः63 कहता है, आत्मा ही जीवन देता है शरीर से कुछ लाभ नहीं होता… केवल उसी प्रकार का प्रेम जिसे परमेश्वर स्वीकार करता है, जीवन दे सकता है और आत्माओं को उद्धार की ओर ले जा सकता है। इसलिए आत्मिक शोक करने के लिए सबसे पहले हमारे हृदय में आत्मिक प्रेम होना चाहिए।

प्रेम को शारीरिक प्रेम और आत्मिक प्रेम में वर्गीकृत किया जा सकता है। शारीरिक प्रेम अपने लाभ को खोजता है यह बदल जाता है, नष्ट हो जाता है, और अर्थहीन हो जाता है, जबकि आत्मिक प्रेम कभी नहीं बदलता है। यह परमेश्वर के वचन के अनुसार प्रेम है। जो स्वयं का बलिदान करके दूसरों के लाभ को खोजता है।

मनुष्यों के प्रयास से आत्मिक प्रेम प्राप्त नहीं हो सकता। यह तभी दिया जा सकता है जब हम परमेश्वर के प्रेम को महसूस करें और सत्य पर चलें। परमेश्वर उन्हें भरपूर आशीषें देता हैं जिनके पास आत्मिक प्रेम है जिससे वे अपने शत्रुओं से भी प्रेम कर सकते हैं और उनके लिए जीवन दे सकें। ऐसे लोग जीवन देंगे ताकि बहुत सी आत्माएं प्रभु के पास लौट आएं।

हम आत्माओं के लिए शोक से प्रार्थना तभी कर सकते हैं जब हमारे अंदर आत्मिक प्रेम हो। फिर, हम उन आत्माओं को भी जीवन और विश्वास दे सकते हैं, जिनका हृदय कठोर है ताकि वे बदल सकें।

जब हमारे पास आत्मिक प्रेम होगा, तो हम परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता के लिए आत्मिक रूप से षोक करेंगे। फिर, मत्ती 6ः33 कहता है, पर पहले उसके धर्म और राज्य की खोज करो, तो ये सब वस्तुएं तुम्हें मिल जाएंगी, आत्माएं बदल जाएंगी और परमेश्वर का राज्य पूरा हो जाएगा।

  1. आत्मिक रूप से शोक करने वालों के लिए आशीषें।

मत्ती 5ः4 में लिखा है, धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शांति पाएंगे। जैसा लिखा है, जो आत्मिक रूप से शोक मनाते हैं, उन्हें परमेश्वर द्वारा शांति दी जाएगी।

परमेष्वर की षांति संसार से अलग है। 1 यूहन्ना 3ः18 कहता है, हे बालको, हम वचन या जीभ से नहीं, पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें। परमेश्वर की शांति केवल वचनों में नहीं है, बल्कि वास्तविक है।

वह गरीबों को आर्थिक आशीष देता हैं। वह बीमारों को चंगा करता है। वह उन लोगों को उत्तर देता है जो अपने हृदय की इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

वह उन लोगों को ताकत देता है जो अपने चर्च के कर्तव्यों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। यदि वे आत्माओं के लिए शोक करते हैं, तो परमेश्वर उन्हें सुसमाचार प्रचार और पुनरुत्थान का फल देता है। इसके अलावा, जो लोग पापों को दूर करने के लिए अपना हृदय चीर कर पष्चाताप करते है और शोक करते हैं, उन्हें वह क्षमा का अनुग्रह देता है। परमेश्वर उन्हें आशीष देता है कि वे प्रेरित पौलुस की तरह परमेश्वर की सामर्थ को इस हद तक दिखाएं कि वे पवित्र हो जाएं।

इसके अलावा, परमेश्वर उन्हें षांति देता हैं। परमेश्वर की षांति अकल्पनीय है। वह हमें वह देता है जिसकी हमें सबसे अधिक और प्रचुर मात्रा में आवश्यकता होती है। वह हमें स्वर्ग में भी प्रतिफल देता है। यही सच्ची आशीषें है।

प्रकाषितवाक्य 21ः4 कहता है, और वह उनकी आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा, और न मृत्यु रहेगी न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी पहली बातें जाती रहीं। वह हमें स्वर्ग में सारी महिमा और प्रतिफल देता है जहाँ कोई आँसू, दुःख या पीड़ा नहीं है।

प्रिय भाइयों और बहनों, जो आत्मिक प्रेम रखते हैं और परमेश्वर के राज्य और धार्मिकता की खोज करते हैं, उन्हें परमेश्वर द्वारा षंाति दी जा सकती है। इसलिए, हमें संसार की चीजों के लिए नहीं परन्तु परमेश्वर की पवित्र संतान बनने के लिए शोक करना चाहिए। हमें अपने विश्वासी भाइयों के लिए और मर रही आत्माओं के लिए आत्मिक रूप से शोक करना चाहिए। ऐसा करने से, आप परमेश्वर के उत्तर और आशीषें और स्वर्ग में प्रतिफल प्राप्त कर सकते हैं, मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं।

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