blood of son of man

क्रूस का संदेष (24) मनुष्य के पुत्र का मांस खाना और लहू पीना (1) – The Message of Cross (24) – Eating of flesh and drinking of Blood of Son of Man (1).

यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा। क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है।’’ (यूहन्ना 6ः 53-55)।

भौतिक जीवन को बनाए रखने के लिए किसी व्यक्ति को हाइड्रेटेड रहने के लिए भोजन करना चाहिए और पानी पीना चाहिए। पानी पोषक तत्वों के पाचन और अवशोषण के साथ-साथ शरीर के भीतर से अनावश्यक कचरे और जहरीले पदार्थों को बहार निकालता है। इसी प्रकार की प्रक्रिया आत्मिक अर्थों में लागू होती है।

जब हम यीशु मसीह को स्वीकार करते हैं और फिर से जल और पवित्र आत्मा से जन्म लेते हैं, तो हम परमेश्वर की संतान बनने का अधिकार प्राप्त करते हैं। तब हमें अपने आत्मिक जीवन को बनाए रखने के लिए मनुष्य के पुत्र का मांस खाना चाहिए और लहू पीना चाहिए।

आइए, आज हम “मनुष्य के पुत्र का मांस खाने“ के अर्थ को जाने।

  1. “मांस खाने और मनुष्य के पुत्र के लहू पीने का महत्व“।


मनुष्य के पुत्र का मांस खाने का क्या अर्थ है? यह आत्मिक रूप से यीशु के मांस को खाना है जो कि अनन्त जीवन का सच्चा भोजन है।

यूहन्ना 1ः14 हमें बताता है, और वचन देहधारी हुआ और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हम ने उस की ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा।“ यीशु ने खुद को “जीवित रोटी, जो स्वर्ग से नीचे उतरी” के रूप में वर्णित किया; अगर कोई इस रोटी को खाता है, तो वह हमेशा के लिए जीवित रहेगा। यूहन्ना 6ः51

मनुष्य के पुत्र का मांस खाना – जो कि परमेश्वर का वचन और जीवन की रोटी है – यीषु को करीब से मेमने के रूप मे दर्षाती है। इसे खाने का तरीका निर्गमन अध्याय 12 में दर्ज बताया गया है।

आम तौर पर एक मेमना केवल अपने चरवाहे की आवाज का पालन करता है। वे कोमल होते हैं और मनुष्य को केवल लाभ देते हैं। उसी तरह, केवल परमेश्वर की इच्छा का पालन करने में, यीशु ने मानव जाति को केवल भली चीजें ही दी हैं और एक षांत मेमने की तरह वह हमारे लिए एक प्रायश्चित बलिदान बन गया। मेमनों में जो, विशेष रूप से एक वर्ष से कम उम्र के होते है, वो शुद्ध होते हैं क्योंकि उन्होंने अभी तक संभोग नहीं किया है और आत्मिक दृष्टि से, उनकी तुलना हमारे यीशु से की जाती है, जो निर्दोष और दोषरहित हैं।

जब पहलौठे की विपत्ति पूरे मिस्र में आई, तो वहां पर सभी पहलौठे को मार डाला, जैसा कि निर्गमन 12ः7-10 में दर्शाया गया है, परमेश्वर ने इस्राएलियों को निर्देश दिया कि वे अपने लिए एक मेमना लें और उसके लहू में से कुछ ले कर जिन घरों में मेम्ने को खाएंगे उनके द्वार के दोनों अलंगों और चैखट के सिरे पर लगाएं। परमेश्वर ने इस्राएल के लोगों को मेमने को खाने के बारे में विस्तृत निर्देश भी दिए।

  1. मेमने का भोजन।

1) इसे “कच्चा या उबला हुआ पानी के साथ“ नहीं खाया जाना चाहिए, लेकिन अग्नि से भुना हुआ।

यहाँ, “अग्नि“ पवित्र आत्मा की अग्नि को दर्षाती है और हम पवित्र आत्मा (2 पतरस 1ः 20-21) की प्रेरणा में परमेश्वर के वचन को समझने और उसकी रोटी बनाते हैं। 2 पतरस 3ः16 हमें चेतावनी देता है कि अगर हम परमेश्ववर के वचन की व्याख्या पवित्र आत्मा की प्रेरणा में नहीं करे, बल्कि विकृत तरीके से करें तो हम सत्य से दूर हो जाऐंगे और अंततः हम विनाश की ओर चले जाऐंगे।

“परमेश्वर के वचन को कच्चा खाना“, इसमें निहित आत्मिक महत्व को समझे बिना परमेश्वर के वचन की शाब्दिक व्याख्या करना है।“

कच्चे भोजन का सेवन करने से अपच या पेट में दर्द हो सकता है। उसी तरह, “परमेश्वर के वचन को कच्चा खाने“ से बाइबल की गलत और झूठी व्याख्याएँ हो सकती हैं।

उदाहरण के लिए, यीशु ने हमें मत्ती 6ः6 में कहा, “परन्तु जब तू प्रार्थना करे, तो अपनी कोठरी में जा और द्वार बन्द कर के अपने पिता से जो गुप्त में है प्रार्थना कर और तब तेरा पिता जो गुप्त में देखता है, तुझे प्रतिफल देगा।“ फिर भी, बाइबल में कहीं भी हम विश्वास के किसी भी पिता के बारे में नहीं पढ़ते हैं जो “भीतरी कमरे“ में प्रार्थना करता है;

इसी तरह यीशु ने कभी भी भीतरी कमरे में प्रार्थना नही की पर एक बगीचे में या किसी दूरस्थ स्थान पर की। इसका अर्थ है कि जब हम प्रार्थना करते हैं तो हमें सांसारिक आवश्यकताओं और चिंताओं में नहीं फँसना चाहिए और वही बातें दोहराई नही जानी चाहिए लेकिन हमें अपने हृदय की गहराइयों से परमेश्वर से वार्तालाप करना चाहिए।

इसके बाद, मेमने को “पानी के साथ उबला हुआ“ नहीं खाना चाहिए। यह हमें बताता है कि इस दुनिया के किसी भी तत्व को परमेश्वर के वचन में नहीं जोड़ा जाना चाहिए। मनुष्य और उसके ज्ञान के विचार अत्यंत सीमित हैं और इस संसार की कोई भी महान विचारधारा परिपूर्ण नहीं है। परमेश्वर का वचन किसी भी सांसारिक ज्ञान से परे है और यह एकमात्र स्थायी और अपरिवर्तनीय सत्य है।

इसे ध्यान में रखते हुए, किसी को भी इस संसार के ज्ञान या परिकल्पनाओं की गवाही नहीं देनी चाहिए लेकिन बाइबल में परमेश्वर के वचन को केवल पवित्र आत्मा की प्रेरणा के रूप में व्याख्या किया गया है। पवित्र आत्मा द्वारा प्रदान किए गए वचनों के इस ज्ञान के माध्यम से, विश्वासियों को जीवित परमेश्वर के बारे में सिखाया जाना चाहिए, जिसमें वे उससे मिल सकते हैं और मसीह में सही जीवन को जी सके जो कि उद्धार के लिए आवश्यक है।

2) “उसके सिर और उसके दोनों पैर उसकी अंतड़ियों समेत खाया जाना चाहिए।“

इसका अर्थ है कि हम उत्पत्ति से लेकर प्रकाषितवाक्य तक, बाइबल के सभी परमेश्वर के वचन की रोटी बनानी है।

बाइबल पढ़ते समय, कुछ लोग लैव्यवस्था जैसेे कठिन भागों को छोड़ देते हैं जबकि अन्य या तो मना कर देते हैं या बाइबल में दर्ज चिन्हों और चमत्कारों के उदाहरणों पर विश्वास करने से हिचकिचाते हैं। अगर लोग बाइबल के कुछ हिस्सों को अनदेखा या नकार देते हैं जो उनके सोच से मेल नही खाता, फिर जो बचता है, वह न तो सत्य है और न ही विश्वास।

केवल नीति और नैतिकता बनी रहेगी। इसके ऊपर, यदि वे अपने हृदय में परमेश्वर की उन आज्ञाओं का पालन नहीं करते हैं जो उनके लिए उचित प्रतीत होती हैं, तो वे चाहे कितनी ही बार या कितनी बार भी बाइबल पढ़ें, अनन्त जीवन प्राप्त नहीं कर पाएंेगें।

परमेश्वर के वचन को भागों और हिस्सो में नहीं लिया जाना चाहिए, लेकिन इसकी संपूर्ण रूप से रोटी बनाई जानी चाहिए। तब, हम अनन्त जीवन प्राप्त कर सकते हैं।

3) ”मेमने का कोई भी हिस्सा सुबह तक नहीं छोड़ा जाना चाहिए; बचे हुए हिस्से को आग से जला दिया जाना चाहिए”।

इसका अर्थ है कि उन्हें सुबह आने से पहले मेमना खाना था। आत्मिक रूप से, “रात“ उस समय की अवधि को दर्शाता है, जिसके दौरान षत्रु, दुष्ट और शैतान इस संसार पर अधिकार करते हैं। “सुबह“ उस समय को दर्शाता है जब प्रभु वापस आएंगे। हमें परमेश्वर के सभी वचन – मनुष्य के पुत्र का मांस खाना चाहिए-प्रभु के वापस आने से पहले।

अंतिम दिनों में, जैसे-जैसे संसार में पाप और बुराई में बढ़ता जा रहा है, अंधेरा बढ़ता जाऐंगा। जब प्रभु वापस आऐंगे, तो अंधेरा दूर हो जाएगा और प्रकाश हो जाऐगा। उस समय, लोग महसूस करेंगे कि बाइबल में जो कुछ लिखा गया था वह सब सत्य है।

इसलिए, हमारे प्रभु के लौटने से पहले – सुबह होने से पहले-हमें परमेश्वर के सभी वचनों की परिश्रम से रोटी बनानी चाहिए, प्रभु की दुल्हन के रूप में अपनी तैयारी पूरी करें, और उसके आने का इंतजार करें।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, जिस हद तक हम परमेश्वर के वचन की अच्छी तरह से रोटी बनाऐंगें, वह इस संसार में और साथ ही स्वर्ग के जीवन की गुणवत्ता में निवास स्थानों और प्रतिफलों के मामले को निर्धारित करेगा।

इसलिए, मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप परमेश्वर के वचन के सभी वचनों की रोटी बनाऐं और स्वर्ग में सबसे महिमामय स्थान में प्रवेश करें।

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