Eating of flesh and Drinking of blood of son of man

(क्रूस का संदेश 25 – मनुष्य के पुत्र के मांस को खाना और लहु को पीना – भाग -2 )Eating of flesh and Drinking of blood of son of man- Message of cross 25

यीशु ने उन से कहा; मैं तुम से सच सच कहता हूं जब तक मनुष्य के पुत्र का मांस न खाओ, और उसका लहू न पीओ, तुम में जीवन नहीं। जो मेरा मांस खाता, और मेरा लहू पीता है, अनन्त जीवन उसी का है, और मैं अंतिम दिन फिर उसे जिला उठाऊंगा। क्योंकि मेरा मांस वास्तव में खाने की वस्तु है और मेरा लहू वास्तव में पीने की वस्तु है। (यहून्ना 6ः53-55)

शारीरिक जीवन को बनाए रखने के लिए, एक व्यक्ति को भोजन का सेवन करना चाहिए और पानी पीना चाहिए। पानी पोषक तत्वों के पाचन और अवशोषण(digestion and absorption of nutrients) के साथ-साथ शरीर के भीतर से अनावश्यक कचरे और जहरीले पदार्थों को शरीर से बहार निकालता है। यद्यपि हम यीशु मसीह को ग्रहण करते हैं, पवित्र आत्मा प्राप्त करते हैं, और परमेश्वर की संतान बनते हैं, अनंत जीवन तभी प्राप्त होता है जब हम मनुष्य के पुत्र का मांस खाते हैं और लहू पीते हैं।

कैसे हम मनुष्य के पुत्र का मांस खा सकते हैं(how can we eat flesh and drink blood of son of man) और लहू पी सकते हैं? पिछले अध्याय से जारी रखते हुए, हम इस विषय के बारे में गहराई से जानेंगें ।

  1. हमें मनुष्य के पुत्र के मांस की रोटी बनानी चाहिए।(We have to make bread of flesh of son of man )

मनुष्य के पुत्र के मांस को खाने और इस प्रकार रोटी बनाने के लिए(To eating of flesh and Drinking of blood of son of man), हमें मनुष्य के पुत्र के लहू को भी पीना जरूरी है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर के वचनों को परिश्रम से सुनकर या पढ़ कर ना केवल अपना ज्ञान बढाना चाहिए, बल्कि हमें वचन की रोटी भी बनानी चाहिए ताकि यह हमारे हृदय में उत्कीर्ण हो सके। तब, “हृदय में परमेश्वर के वचन की रोटी बनाने“ और “ज्ञान के रूप में वचनों को इकट्ठा करके रखने“ में क्या अंतर है?

मस्तिष्क(Brain) में संग्रहित किसी भी जानकारी को भूलाया जा सकता है, और सिर्फ इसलिए कि हम “सत्य जानते हैं“ जरूरी नहीं है कि हम सत्य के अनुसार कार्य करेंगे। बाइबल की व्याख्या करने में, हमें न केवल अपने होठों से वचनो को याद रखना चाहिए, बल्कि उन पर मनन करने का भी प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर, अगर हम मत्ती 5ः44 की आयत को याद करते हैं जिसमें लिखा है, “परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।”, तो हमें इसे अपने जीवन में इसका अभ्यास करना चाहिए।

जब कोई बुराई करता है और हमें सताता है, तो परमेश्वर के वचन(Word of God) के अनुसार हम उससे प्रेम कर पाएंगे और उसके लिए प्रार्थना भी कर पाऐगें। यदि हम परमेश्वर की आज्ञा केवल ज्ञान के रूप में अपने सिर में रखते हैं, तो हमारे हृदय में परेशानी होंगी, और हम दूसरों से घृणा कर सकते हैं और अंत में बुराई के बदले बुराई कर सकते हैं। फिर भी, यदि हमने इस विशेष आज्ञा की रोटी बनाई है, तो प्रेम और दया हमारे भीतर से आऐगी और हम घृणा(Hatred) और गर्म मिजाज(Hot-Tempered) से मुक्त हों जायेंगे। जब हम लगातार नम्रता की रोटी बनाते हैं तो हम अहंकार को दूर कर पायेंगे।

  1. हमें मनुष्य के पुत्र का लहू साथ में पीना चाहिए।(we have to drink blood of son of man together)

परमेश्वर के वचन को अपनी रोटी बनाने के लिए न केवल पवित्र आत्मा की प्रेरणा में बाइबल की समझ की आवश्यकता है, बल्कि जोशीली प्रार्थनाओं (Fervent prayers) के द्वारा परमेश्वर के अनुग्रह और सामर्थ को प्राप्त करने की भी आवश्यकता है। इस स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति का प्रयास आवश्यक है कि वह वचन पर पूर्ण रूप से विश्वास करे और उसे अभ्यास में लाऐं। यह मनुष्य के पुत्र के लहू को पीने का कार्य है।

इसलिए, “मनुष्य के पुत्र का लहू पीने“(To Drinking blood of son of man) का अर्थ परमेश्वर के वचन का अभ्यास करना है। परमेश्वर के वचन को चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। यह “रखना,“ “निकाल फेंकना,“ “करना,“ और “नही करना हैं, और हमें उनमें से प्रत्येक को रखने और उनका पालन करने के योग्य होना चाहिए।“

आज्ञाकारिता के कार्य के बिना, हम परमेश्वर के कार्यों का अनुभव नहीं कर सकते और परमेश्वर के कार्यों का अनुभव किए बिना, हम उस विश्वास से परे नहीं जा पाएंगे जो केवल ज्ञान मात्र है। याकूब 2ः22 कहता है, “सो तू ने देख लिया कि विश्वास ने उस के कामों के साथ मिल कर प्रभाव डाला है और कर्मों से विश्वास सिद्ध हुआ।“ केवल जब हम परमेश्वर को विश्वास के कार्य दिखाते हैं, तो ज्ञान के रूप में विश्वास, आत्मिक विश्वास में बदल जाता है।

भले ही किसी का विश्वास पहले सरसों के बीज के समान छोटा हो, जब वह अपने विश्वास के कार्यों को परमेश्वर को दिखाता रहता है, परमेश्वर उसे अपने अनुग्रह और सामर्थ का अनुभव करने देगें और जो उसके विश्वास को महान विश्वास में बदलने में पोषण का काम करेगा। जब हम परमेश्वर के वचन पर भरोसा करते हैं और इसे अपने जीवन के हर पल अभ्यास में लाते हैं, तो हम “ जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहिचान में एक न हो जाएं, और एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं।“ (इफिसियों 4ः13)।

दूसरी ओर, यदि हम परमेश्वर के वचनों का अभ्यास नहीं करते, यहां तक कि पवित्र आत्मा पाने के बाद भी सरसों के बीज(Mustard seed) के आकार का विश्वास रखते है, तो न ही हम आत्मिक अनुभव कर पाएंगे और न ही मसीह में एक लंबा जीवन जीने के बावजूद हमारा हृदय बदलेगा। कुछ खराब स्थितियों में, हम अपने विश्वास को छिनने भी दे सकते हैं और पूरी तरह से विश्वास से दूर हो सकते हैं, मैं आप में से प्रत्येक से अनुरोध करता हूं कि आप मनुष्य के पुत्र का लहू पीकर सिद्ध विश्वास को प्राप्त करें।

3.उद्धार ,अनन्त जीवन, उत्तर, और आशीषों को प्राप्त करने के लिए हमारे पास कर्मों के साथ विश्वास होना चाहिए। (We Should Have Faith With Deeds to Receive Salvation, Eternal Life, Answers, and Blessings)

यदि आप बाइबल में लिखे परमेश्वर के वायदों पर भरोसा करते हैं, तो आपका विश्वास निश्चित रूप से कर्मों के साथ होगा। मान लीजिए कि किसी ने आपको लाखों डॉलर का खजाना देने का वायदा किया है और इसे वाशिंगटन, डीसी में रखा है और उसने आपसे कहा कि यदि आप न्यूयॉर्क शहर से पूरे रास्ते में चले, तो लगभग 331 किलोमीटर (लगभग 206 मील) पैदल चलकर आप इसे प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप वास्तव में खजाना चाहते है और यदि जिस व्यक्ति ने आपको इसके बारे में सूचित किया है वह आवश्यकता है, तो आप न्यूयॉर्क से वाशिंगटन तक चलेंगे।

इस कारण से, याकूब 2ः26 का दूसरा भाग हमें याद दिलाता है कि “कर्म के बिना विश्वास मरा हुआ है।(Faith without work is dead)“ बहुत से लोग अपने होठों से कहते हैं, “मैं सर्वशक्तिमान परमेश्वर में विश्वास करता हूं“ लेकिन क्योंकि वे पूर्ण विश्वास करने में असमर्थ हैं, वे कर्मों के साथ विश्वास नहीं दिखा सकते हैं। जिस तरह हम परमेश्वर के वचन में पाते हैं, केवल कर्मों के साथ आत्मिक विश्वास ही हमें उद्धार और परमेश्वर की आशीषें और हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर दे सकता हैं।

कुछ लोग रोमियों 10ः13 का उदाहरण देते हैं, जो हमें बताता है, “ क्योंकि जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा।“ वह यह तर्क देते है कि यहां तक कि पापो में रहने वाले लोग को भी बच सकते है यदि वे अपने विश्वास का अंगीकार करे (Confession of faith) । वे अपने पापी तरीकों को सही ठहराने की कोशिश करते हैं। फिर भी, यह विशेष वचन परमेश्वर के असीम प्रेम का प्रतीक है, जिन्होंने यीशु मसीह के द्वारा पापियों को बचाया है और इस वचन का उपयोग पापियां कोे उचित ठहराने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

जैसा कि परमेश्वर का वचन हमेशा जोड़े में है और होना चाहिए, इस संदर्भ में हमें बाइबल में प्रत्येक वचन को देखना चाहिए और शास्त्रों की व्याख्या(interpretation of the Scriptures) केवल पवित्र आत्मा की प्रेरणा(Inspiration of holy spirit) से ही सटीक रूप से समझी जा सकती है। रोमियों 10ः 9-10 हमें बताता है, “कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। “

क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है।“ रोमियों 10ः13 का वास्तव में अर्थ है कि जो लोग धार्मिकता के स्तर पर पहुंच गए है जब वो लोग अपने होंठों से अंगीकार करते है तो वो उद्धार को प्राप्त करेंगे।

तब, बाइबल में इसका क्या अर्थ है जो हमें यह बताता है, “जब हृदय से व्यक्ति विश्वास करता है, तो क्या परिणामस्वरूप धार्मिकता होती है”? रोमियों 2ः13 में हम पढते है, क्योंकि परमेश्वर के यहां व्यवस्था के सुनने वाले धर्मी नहीं, पर व्यवस्था पर चलने वाले धर्मी ठहराए जाएंगे। “दूसरे शब्दों में, जब हम वास्तव में अपने हृदय से परमेश्वर के वचन पर विश्वास करते हैं जो हम सुनते हैं, तो हम उनके वचन के अनुसार जीवन जीऐंगे और यह हमारे लिए न्यायसंगत बनने की अनुमति देगा जिसके परिणामस्वरूप धार्मिकता उत्पन्न होती है।

मसीह में प्रिय भाईयों और बहनों, मेहनत से मनुष्य के पुत्र का मांस खाने और का लहू पीने के द्वारा, मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप परमेश्वर को कर्म सहित विश्वास के द्वारा प्रसन्न करेंगें और अपने जीवन के हर कार्यों में समृद्ध होंगें।

आप इस संदेश को मनुष्य के पुत्र का मांस खाना और लहु पीने के अर्थ को विडियो के माध्यम से भी सुन सकते है हिन्दी में ( You can watch video sermon on Eating of flesh and Drinking of blood of son of man in hindi ) – Click here

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