i am who i am

क्रूस का संदेश (2) मैं जो हूं सो हूं (Message of cross – I am who I am )

परमेश्वर ने मूसा से कहा, मैं जो हूं, सो हूं (I AM WHO I AM) । फिर उस ने कहा, तू इस्राएलियों से यह कहना, कि जिसका नाम मैं हूं है उसी ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है (निर्गमन 314)।

हमारे मसीह जीवन में, यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर कौन है?

कुछ विश्वासी अपने होठों से कहते है कि वे परमेष्वर पर विश्वास करते हैं, लेकिन वे उसके प्रेम को महसूस नहीं करते हैं और उन्हें उद्धार का कोई आश्वासन नहीं है। जब हम परमेश्वर की उत्पत्ति को जानते हैं तब ही हम परमेश्वर के साथ घनिष्ठ संबंध रख सकते हैं और उद्धार के आश्वासन के साथ आत्मा से भरा जीवन जी सकते हैं।

  1. परमेष्वर जिसकी न तो षुरूआत है न ही अंत, मैं जो हूं, सो हूं है।

मनुष्य ने जो कुछ भी सीखा और अनुभव किया है, उसमें हमेशा एक शुरुआत और एक अंत होता है। उदाहरण के लिए, मनुष्यांे और जानवरों की शुरुआत और अंत होता है। उनकी शुरुआत उनके माता-पिता द्वारा जन्म से चिह्नित की जाती है और उनके अंत को चिह्नित किया जाता है कि वे कब और कैसे मरते हैं। कोई भी प्राचीन वस्तु कितनी भी पुरानी क्यों न हो, वह किसी न किसी बिंदु पर उत्पन्न हुई थी और सभी ऐतिहासिक घटनाओं की शुरुआत और अंत हुआ है।

इस वजह से कुछ लोग पूछते हैं, परमेश्वर की रचना किसने की? या किस बिंदु से परमेष्वर उपस्थित हुए हैं और उससे पहले क्या था? और कुछ अन्य लोग सोचते हैं और आश्चर्य करते हैं कि परमेष्वर पहले कैसे अस्तित्व में आए जैसे कि उनके अस्तित्व का एक प्रारंभिक बिंदु होगा। हालाँकि, अगर सृष्टिकर्ता और पिता परमेश्वर ने ऐसी शुरुआत की होगी, तो अपने आप में सबसे विचित्र बात होगी।

यदि इतिहास के किसी बिंदु पर परमेश्वर ने अस्तित्व की शुरुआत की थी, तो लोग स्पष्ट रूप से उन चीजों के बारे में सोचेंगे जो शायद परमेश्वर और उसकी उपस्थिति से पहले का समय हो सकता है। परमेष्वर न तो निर्माता और न ही निरपेक्ष हो सकता है अगर किसी और ने उसे जन्म दिया या दिया हो। इसलिए, यदि परमेश्वर वास्तव में पूर्ण और सिद्ध है, तो उसे एक शुरुआत या अंत के बिना होना चाहिए और अपने स्वंय अस्तित्व में होना चाहिए।

परमेष्वर कौन है के बारे में, उन्होंने निर्गमन 3रू14 में मूसा से कहा, मैं जो हूं, सो हूं। किसी ने परमेष्वर को जन्म नहीं दिया और न ही उसे बनाया। परमेश्वर चिरस्थायी, अनंत काल से अनंत काल तक के पहले के समय से भी।

  1. परमेश्वर ज्योति और ध्वनि के रूप में विद्यमान था लेकिन परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र, और परमेश्वर आत्मा के त्रिएक में विभाजित हो गया।

अनंत काल के पहले से मौजूद हमारे परमेश्वर किस आकार या स्वरूप में अस्तित्व में था ? यूहन्ना 1:1 हमें बताता है, आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।

यहां, आदि में वाक्यांश ब्रह्मांड में चीजों को बनाने से पहले उस समय को अच्छी तरह से संदर्भित करता है, जब परमेष्वर स्वयं मौजूद थे। यह एक ऐसे युग का प्रतीक है जिसे एक प्राणी मात्र अपने सीमित अनुभव या ज्ञान के साथ नहीं समझ सकता। इस परमेश्वर के बारे में जो अनंत काल केे पहले से मौजूद है, यूहन्ना 1रू 1 हमें बताता है कि वचन परमेश्वर था। उसने अभी तक किसी विशेष रूप को धारण नही किया था लेकिन वचन के रूप में ही अस्तित्व में था, और यह ध्वनि है।

1 यूहन्ना 1रू 5 भी हमें बताता है, जो समाचार हम ने उस से सुना, और तुम्हें सुनाते हैं, वह यह है कि परमेश्वर ज्योति है और उस में कुछ भी अन्धकार नहीं। ज्योति और अंधकार षब्दो में आत्मिक अर्थ छुपा हुआ है। अंधकार शब्द में वह सब कुछ शामिल है जो सत्य नहीं है, जो कि अधार्मिकता, अन्याय और पापपूर्ण है, जबकि शब्द ज्योति हर उन चीजों को संदर्भित करता है जो सत्य है जैसे कि प्रेम, भलाई, धार्मिकता और इसी तरह। फिर भी, परमेश्वर न केवल आत्मिक दृष्टि से ज्योति है, बल्कि वह इस समय के दौरान पहले ज्योति के रूप में अस्तित्व में था।

परमेश्वर जो वचन है, वह इतनी सुंदर और चमत्कारिक ज्योति के बीच एक स्पष्ट और पारदर्शी ध्वनि के साथ मौजूद था। वह एक अनिश्चित रूप से सुंदर ज्योति के बीच में और एक पारदर्शी, मधुर, नरम, राजसी और गरजती आवाज के रूप में अस्तित्व में था जो पूरे ब्रह्मांड में गूंजती थी।

तब उनके चयन के समय, परमेश्वर, जो ज्योति और ध्वनि के रूप में अस्तित्व में था, मनुष्यों को बनाने के लिए उस. किसी ऐसे व्यक्ति को चाहता था जिसके साथ वह प्रेम को बाँट सके। मनुष्यजाति की जुताई के बारे में सभी योजनाओं को पूरा करने के लिए, परमेष्वर ने पहली बार खुद को त्रिएक परमेष्वर में विभाजित किया परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र और परमेष्वर आत्मा।

इस समय से मूल परमेश्वर त्रिएक परमेष्वर के रूप में अधिक ठोस स्वरूप लिया और, जैसा कि उत्पत्ति 1:26 में दर्ज किया गया है, हम जानते हैं कि वह कैसा दिखता था, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएं। दूसरे शब्दों में, जब त्रिएक परमेश्वर ने को मनुष्य बनाया, तो उसने अपने स्वरूप में मनुष्य को बनाया। मनुष्य का बाह्य स्वरूप परमेष्वर के स्वरूप में बनाया गया था और मनुष्य के हृदय को परमेष्वर के हृदय के सदृश बनाने के लिए बनाया गया था। हालाँकि, उस समय से जब आदम ने पाप किया, मनुष्य का हृदय जो परमेश्वर के हृदय के सदृष था, वह बदतर हो गया है और यह धीरे-धीरे परमेष्वर से बहुत दूर हो गया।

  1. केवल मैं जो हूं , सो हूं ही हमारी आराधना का उद्देश्य है।

जो मनुष्य मात्र प्राणी है, उसके विपरीत, परमेश्वर अपने आप में अनंत से अनन्त तक विद्यमान है। केवल मैं जो हूं, सो हूं ही सच्चा और पूर्ण परमेश्वर है और केवल उसे ही हमारी आराधना और प्रेम का उद्देश्य होना चाहिए। फिर भी, कुछ लोग इस परमेश्वर को नहीं जानते हैं और इस प्रकार उन मूर्तियों की पूजा करते हैं जो मनुष्य द्वारा बनाई गई हैं। ऐसे व्यक्ति सोने, चांदी, लकड़ी और चट्टान से बनी वस्तुओं को बनाते हैं और फिर वे उनके सामने झुक जाते हैं।

मान लीजिए कि आपने जिस बच्चे को जन्म दिया है, वह आपको पहचान नहीं सका और अजनबियांे के पास जाकर उन्हें मम्मी पापा कहना शुरू कर दंे। आप अपने हृदय में कितने निराश और दुखी होंगे। उसी तरह, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता को कितना निराश और दुखी करेगा यदि आप किसी ऐसी मूर्ति की आराधना करेंगे जिसका अविष्कार मनुष्य ने किया हो? इस कारण से, परमेष्वर मूर्ति पूजा को मना करते हैं।

निर्गमन 20रू 3-5 में परमेश्वर हमसे कहता है, तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना॥ तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, वा पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। तू उन को दण्डवत न करना, और न उनकी उपासना करना क्योंकि मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हूं, और जो मुझ से बैर रखते है, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूं।
केवल परमेश्वर के लिए जो मैं जो हूं, सो हूं एक सच्चा परमेष्वर है, हमें केवल उसकी आराधना और सेवा करनी चाहिए।

यहाँ एक और बात आपको ध्यान में रखनी चाहिए। जो उद्धारकर्ता यीशु इस संसार में आया, वह भी सृष्टिकर्ता परमेश्वर के समान है। कोई भी पुरुष या महिला उसके माता-पिता नहीं हो सकता है। बेशक, जब यीशु उद्धारकर्ता बनने के लिए इस संसार में आया, तो उसने षरीर धारण किया और एक कुंवारी से पैदा हुआ।

फिर भी, हालाँकि, हम मत्ती 1रू18 में पढ़ते हैं, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। मरियम को यहाँ यीशु की माँ के रूप में संदर्भित किया जाता है, क्योंकि यह कथा यीशु के एक शिष्य द्वारा दर्ज किया गया था। यीशु किसी भी वंशानुगत प्रभाव के साथ पैदा नहीं हुआ था, जो उसे यूसुफ के शुक्राणु या मरियम के अंडाणु के द्वारा दिया गया था। उसका जन्म पवित्र आत्मा की सामर्थ से हुआ था। परमेष्वर ने गर्भावस्था में कुंवारी मरियम का उपयोग केवल उद्धारकर्ता को ले जाने के लिए एक उपकरण के रूप में किया।

बाइबल की कई जगहों पर हम देखते है यीशु ने कुंवारी मरियम को मां नही बल्कि नारी कहा हैं। कहीं भी यीषु ने माँ नहीं कहा। कोई भी महिला, जो एक मात्र प्राणी है, कभी भी सृष्टिकर्ता परमेष्वर की माँ नहीं हो सकती है। कुछ लोग कुंवारी मरियम की आराधना और स्तुति करते हैं जैसे कि वे स्वयं परमेष्वर की आराधना कर रहे हों। हालाँकि, यहाँ आपको याद रखना चाहिए कि कोई भी प्राणी कभी भी हमारी आराधना का उद्देश्य नहीं बन सकता है। आपको हमेशा याद रखना चाहिए कि त्रिएक परमेष्वर के अलावा कुछ भी हमारी आराधना का उद्देश्य नहीं बन सकता है।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, परमेश्वर मैं जो हूं, सो हूं है, शुरुआत में ज्योति और ध्वनि के रूप में मौजूद था। सच्ची संतान को पाने के लिए जिनके साथ वह हमेशा के लिए प्रेम बांट सकें, उन्होंने मनुष्य को बनाया और मनुष्यजाति की जुताई शुरू की। मनुष्यजाति की जुताई के लिए, वह त्रिएक परमेष्वर के रूप में अस्तित्व में आया । मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि हमेशा यह ध्यान रखें कि सृष्टिकर्ता परमेष्वर ही सच्चा परमेश्वर है और केवल उसकी आराधना करने से आप मसीह में एक धन्य जीवन जीएंगे।

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