jesus laid in a manger

क्रूस का सन्देश (11) यीशु का चरनी में रखा जाना। ( Jesus laid in a Manger )

कि आज दाऊद के नगर में तुम्हारे लिये एक उद्धारकर्ता जन्मा है, और यही मसीह प्रभु है और इस का तुम्हारे लिये यह पता है, कि तुम एक बालक को कपड़े में लिपटा हुआ और चरनी में पड़ा पाओगे। (लूका 2ः11-12 )।

यीशु परमेश्वर के रूप में था, और वह ब्रह्मांड में सभी चीजों का स्वामी, राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु है। (फिलिप्पियों 2:6, प्रकाशितवाक्य 19:16)। लेकिन क्यों उसे धरती पर शरीर में होकर आना पड़ा, उसे चरनी में रखना पड़ा, और गरीबी में रहना पड़ा? (But why did jesus have to come to the earth in flesh, be laid in a manger, and live in poverty? )

1.  क्या कारण है कि यीशु का जन्म गौशाला में हुआ और उसको चरनी में रखना पडा।

लूका 2 में एक दृश्य है जिसमें कुँवारी मरियम और उसका पति, युसुफ जनगणना के लिए पंजीकरण कराने के लिए बेथलहम गए थे और यही पर मरियम ने यीशु को जन्म दिया था।

बहुत से लोगों ने बेतलेहेम में भीड़ लगा दी थी और वहां सराय भर दी थी। मरियम के पास गौशाला में यीशु को जन्म देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। क्योंकि यीशु को जो कपड़े में लिपटा हुआ था, रखने के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी, मरियम ने शिशु यीषु को एक चरनी में रखा ( jesus laid in a manger )। यह परमेश्वर के प्रावधान के अनुसार था।

सभोपदेशक 3ः18 हमें बताता है, मैं ने मन में कहा कि यह इसलिये होता है कि परमेश्वर मनुष्यों को जांचे और कि वे देख सकें कि वे पशु-समान हैं और कुछ ऐसा सोच सकते है कि बाइबल यह क्यों कहती है कि हम पशु-समान है और सोच सकते है कि यह तुलना तो अजीब है। हालाँकि, यह मनुष्य की दुष्टता है, जो उसे अक्सर जानवरों के पद से नीचे रखती है।

भौतिक लालच को संतुष्ट करने के लिए, मनुष्य अपने ही परिवार के सदस्यों पर बहस करने, मुकदमा करने या यहाँ तक कि मारने से भी नहीं हिचकिचाता। आदि में, परमेश्वर ने मनुष्य को अपने भले और पवित्र स्वरूप में बनाया। हालाँकि जब से पहले मनुष्य आदम ने पाप किया, उसके सभी वंशज पापी बन गए और उनकी आत्माएँ मर गईं। उन्होंने अंततः मनुष्य के कर्तव्य की भावना को खो दिया और उन्होंने अपनी सांसारिक इच्छाओं और लालच को संतुष्ट करने के लिए सभी प्रकार के पाप किए हैं।

यूहन्ना 6ः51 में यीशु हमें बताता है, जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है। यहाँ, स्वर्ग से उतरी हुई जीवित रोटी को खाने का अर्थ है, हृदय में परमेश्वर के वचन की रोटी बनाना।

जैसे भोजन के खाने से जीवन कायम रहता है, वैसे ही आत्मिक रोटी के खाने से आत्मा जीवित रहती है। यही कारण है कि यीशु परमेश्वर का वचन इस संसार में शरीर के रूप में आया और खुद को सभी मानव जाति के लिए जीवन की रोटी बना दिया। केवल जब हम यीशु द्वारा दी गई जीवन की रोटी खाते हैं तो हम खोए हुए परमेश्वर के स्वरूप को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रावधान को हम पर प्रकट करने के लिए परमेश्वर ने यीशु को एक चरनी में रखा था।

तो फिर, हम जानवरों के जीवन से कैसे मुक्त हो सकते हैं और मनुष्य के रूप में कर्तव्य का पालन कैसे कर सकते हैं? सभोपदेशक 12ः13 हमें बताता है, जब सब कुछ सुन लिया गया तो निष्कर्ष यह है परमेश्वर का भय मानना और उसकी आज्ञाओं का पालन करना, क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होता है  सब कुछ सुना गया अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्तव्य यही है। मनुष्यों का कर्तव्य निभाना परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना है। इसलिए, उन कामों को करना है जो बाइबल हमें करने के लिए कहती है, उन कामों को नहीं करना है जिन्हें बाइबल हमें नहीं करने के लिए कहती है, उन चीजों को रखना है जिन्हें बाइबल हमें रखने के लिए कहती है, और उन चीजों से दूर रहना है जिनसे बाइबल हमें दूर रहने के लिए कहती है।

परमेश्वर की इच्छा हमारे जीवन को कठिन बनाने की नहीं है। अपने प्रेम में, माता-पिता अपने बच्चों को मनुष्य के बुनियादी कर्तव्यों को सिखाते हैं जैसी कि पढाई करना,  और नहाना इत्यादि। उसी तरह, परमेश्वर अपनी संतानों को विभिन्न प्रकार की बातें सिखाता और बताता है ताकि वे मनुष्य के रूप में कर्तव्य का पालन कर सकें और आशीषित जीवन जी सकें। यह परमेश्वर का महान प्रेम है जो चाहता है कि सभी मनुष्यों को बचाया जाए और स्वर्ग में प्रवेश कर सके।

2. क्या कारण है कि यीशु ने गरीबी में जीवन व्यतीत किया।

मत्ती 8ः20 कहता है, यीशु ने उस से कहा, लोमडियों के भट और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं परन्तु मनुष्य के पुत्र के लिये सिर धरने की भी जगह नहीं है। यद्यपि उसने सुसमाचार का प्रचार किया और अनगिनत बीमारों को चंगा किया। यीशु के पास आराम करने के लिए कोई निश्चित स्थान नहीं था। अपनी सेवकाई के दौरान किए गए असंख्य चमत्कारों के बावजूद, यीशु गरीबी में क्यों रहा?

जैसा कि 2 कुरिन्थियों 8ः9 हमें बताता है, तुम हमारे प्रभु यीशु मसीह का अनुग्रह जानते हो, कि वह धनी होकर भी तुम्हारे लिये कंगाल बन गया ताकि उसके कंगाल हो जाने से तुम धनी हो जाओ। यीशु गरीबी में रहा, हमें समृद्धि की आशीष देने के लिए।

जब आदम अदन की वाटिका में रहता था, तो सब कुछ बहुतायत में था और उसे परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं थी। हालाँकि, उसके पाप करने के बाद, मनुष्य और पृथ्वी पर सभी चीजें एक साथ शापित थीं। आदम केवल परिश्रम और अपने माथे के पसीने के द्वारा ही अपने जीवन का निर्वाह कर सकता था (उत्पत्ति 3:17)। चूँकि पहले मनुष्य आदम के पाप के परिणामस्वरूप सभी लोग गरीब हो गए थे, यीशु स्वयं गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा था ताकि मानव जाति को उनकी गरीबी से छुड़ाया जा सके।

कुछ लोग कहते हैं कि भौतिक आशीषों के लिए परमेश्वर से मांगना गलत है, लेकिन हमें आशीषें देने के उनके वायदों के कई उदाहरण बाइबल में पाए जाते हैं। हम यह भी देखते हैं कि अब्राहम, इसहाक, याकूब और यूसुफ जैसे विश्वास के पिता परमेश्वर का भय मानते थे और उसके वचन का पालन करते थे, इसलिए वे बहुतायत और समृद्धि में जीवन जीते थे। हमारे प्रभु के अनुग्रह से, जिसने हमें गरीबी से छुड़ाया है, हमें आशीषें प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए। बेशक, हमें लालच से आशीषें नहीं मांगना चाहिए, लेकिन हमारे धन का उपयोग परमेश्वर की महिमा को प्रकट करने के लिए किया जा सकता है जरूरतमंदों को राहत देने, मिषन के काम में सहयोग देने और भवन के निर्माण के लिए, विशेष दान देने जैसे अच्छे काम में किया जा सकता है ।

परमेश्वर अपनी संतानों को विश्वास के द्वारा जो कुछ वे उससे माँगते हैं, देना चाहता हैं (मत्ती 7ः11), परन्तु उन सभी को नहीं जो उससे यह कहते हुए प्रार्थना करते हैं, परमेश्वर, मुझे आशीषें दे। उसकी आशीषें प्राप्त करेंगें? उदाहरण के लिए, जैसा कि 3 यूहन्ना 1ः2 हमें याद दिलाता है, हे प्रिय, मेरी यह प्रार्थना है कि जैसे तू आत्मिक उन्नति कर रहा है, वैसे ही तू सब बातों मे उन्नति करे, और भला चंगा रहे। सभी बातो में उन्नति करने के लिए हमारा प्राण पहले समृद्ध होना चाहिए। यह कहना कि प्राण समृद्ध है, यहाँ परमेश्वर के वचन के अनुसार जीने के द्वारा परमेश्वर के उस स्वरूप को पुनः प्राप्त करने को संदर्भित करना है जिसे हमने खो दिया था।

व्यवस्थाविवरण 28ः2  हमें यह भी बताता है, फिर अपने परमेश्वर यहोवा की सुनने के कारण ये सब आर्शीवाद तुझ पर पूरे होंगे। यदि कोई परमेश्वर के वचन के अनुसार जीवन जीता भी है, तो उसे परमेश्वर की आशीषों को प्राप्त करने के लिए विश्वास से बोना चाहिए। महान विश्वास वाला व्यक्ति भी भरपूर काटेगा यदि उसने भरपूर बोया है। यदि उसने थोड़ा बोया है, तो थोड़ा ही काटेगा। (2 कुरिन्थियों 9:6)। परमेश्वर आपको जिस प्रकार की आशीषें देता है, वह पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ देता है। वो आपकी गोद में दोगुणा से अधिक उंडेल दिए जाऐगा और जितना आपका प्राण समृद्ध होगा, वह आपको तीस, साठ और सौ गुना वापसी देगा।

पूरी तरह से बोना केवल किसी की बोने की मात्रा या राषि को संदर्भित नहीं करता है। परमेश्वर उस प्रकार के हृदय, प्रेम और विश्वास में रुचि रखता है जिसके साथ वह बोता है और वह प्रत्येक व्यक्ति के हृदय की सुगंध को स्वीकार करता है। जब यीशु ने एक गरीब विधवा को दो छोटे तांबे के सिक्के खजाने में डालते हुए देखा, तो उसने उस महिला की सराहना की, क्योंकि उसकी गरीबी के बावजूद, विधवा ने वह सब कुछ डाल दिया, जिस पर उसे जीवित रहना था। ऐसे हृदय और भक्ति की सुगंध से परमेश्वर प्रसन्न होते हैं।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, मुझे आशा है कि आप परमेश्वर के प्रेम और प्रावधान को महसूस करेंगे जिसने अपने पुत्र यीशु को भेजकर उसे चरनी में रखकर, और गरीबी में रहने के लिए छोडा। मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि ऐसा करने से आप यीशु मसीह को स्वीकार करेंगे, एक मनुष्य के रूप में कर्तव्य का पालन करेंगे, और परमेश्वर की महिमा करेंगे जो आपको उत्तर देगा और आपको बचाएगा।

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