Sins leading to death

क्रूस का संदेश (22) परमेश्वर में विष्वास करने के बावजूद भी बिना उद्धार पाए लोग। (People without salvation despite their confession of faith (1) – Sins Leading to death Part – 1).

जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है। (मत्ती 7:21)।

पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है इस के विषय में मैं बिनती करने के लिये नहीं कहता। (1 यूहन्ना 5:16)।(There is a sin leading to death. I am not saying that you should pray about that.”)

मत्ती 25 अध्याय में हमें पांच बुुद्धिमान कुंवारियों की कहानी मिलती है जिन्होंने अपनी मषालों के साथ तैल भी तैयार किया और पांच अन्य मूर्ख कुंवारियों ने अपने साथ कोई तेल नहीं लिया। दूल्हे के आगमन की घोषणा की गई, मूर्ख कुंवारी तेल खरीदने गई लेकिन जब वे वापस लौटी, तो विवाह भोज का दरवाजा पहले ही बंद हो चुका था।

यहाँ, दस कुंवारियाँ स्वर्ग की आशा के साथ सभी विश्वासियों को दर्शाती हैं और दूल्हा यीशु मसीह का प्रतीक है। यहाँ महत्वपूर्ण सबक यह है कि दस में से केवल पाँच बुद्धिमान कुंवारियों ने ही विवाह के भोज में प्रवेश किया और बाकी लोग नहीं कर सके। पाँच मूर्ख कुंवारियों की तरह, कुछ विश्वासियों को उद्धार प्राप्त नहीं होगा। जो लोग परमेश्वर में अपना विष्वास रखते हैं, उनमें से कौन-सा विश्वासी उद्धार पाने और स्वर्ग में प्रवेश करने में असफल होगा?

  1. जो लोग अधार्मिकता करते हैं।

मत्ती 7:21 कहता है, जो मुझ से, हे प्रभु, हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है।
निम्नलिखित पद में 22-23 यीशु कहते है, उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए? तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना, हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ। भले ही लोग प्रभु में अपने विष्वास का अंगीकार करे और चमत्कारी कार्य करें, तब प्रभु उनसे कहेगा, जो कुकर्म का करते हैं, मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना।

संसार के अंत में, न्याय के दिन पर, हमारा प्रभु उन सभी अधर्मियों को अलग करेगा जिन्होंने अधर्म किया है और यहाँ तक कि दूसरों को भी गिराया है, और उन्हें आग की भट्टी में फेंक दिया जाएगा जो नर्क की सजा है (मत्ती 13:40-42)।

“अधर्म” से यीशु का क्या मतलब था? जैसा कि 1 यूहन्ना 3:4 हमें बताता है, जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है और पाप करना तो व्यवस्था का विरोध करना है। “अधर्म, या पाप, सत्य की व्यवस्था का उल्ल्ंघन करने से उपजा है, जो कि परमेश्वर का वचन है। अधर्मी वे लोग हैं जो बाइबल में मना की हुई चीजों को करते हैं जो लोग उन चीजों को नहीं निकाल फेकते हैं जो बाइबल उन्हें निकाल फेकने के लिए कहती है और जो लोग ऐसा करने में विफल रहते हैं, जो बाइबल उन्हे करने को कहती है और जो लोग मानते या रखते नही है जिन्हे बाइबल रखने और मानने को कहती है।
बाइबल 1 कुरिन्थियों 6:9-10 में इस बारे में विस्तार से बताती है, क्या तुम नहीं जानते, कि अन्यायी लोग परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे? धोखा न खाओ, न वेश्यागामी, न मूर्तिपूजक, न परस्त्रीगामी, न लुच्चे, न पुरूषगामी। न चोर, न लोभी, न पियक्कड़, न गाली देने वाले, न अन्धेर करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस होंगे। प्रभु पर विश्वास का अंगीकार करने के बावजूद भी, यदि वह पाप से फिरे बिना अधर्म का काम करता है, तो वह स्वर्ग को प्राप्त करने में असमर्थ होगा और इस तरह नर्क में समाप्त हो जाएगा (गलातियों 5:19-21)।

आप में से कुछ पूछ सकते हैं, अगर एक नए विष्वासी ने झूठ कहा और अगर वह उस झूठ के कारण उद्धार प्राप्त करने में असमर्थ है, तो वास्तव में कितने लोग उद्धार प्राप्त करेंगे? सिर्फ इसलिए कि एक व्यक्ति ने सिर्फ प्रभु को स्वीकार किया है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह अपने सभी पापों को तुरंत दूर करने में सक्षम है। भले ही वह व्यक्ति अपने सभी पापों को नहीं निकाल फेकता है, जब वह प्रार्थना करता है, हर संभव प्रयास करता है, और उसी के अनुसार बदलता जाता है, तो परमेश्वर उसके प्रयास को ग्रहण करेंगें जो उद्धार पाने के योग्य विष्वास का प्रमाण हैं।

हालाँकि, यदि व्यक्ति पापों को निकालने की कोशिश भी नहीं करता है, लेकिन वास्तव में पाप करता रहता है और संसार मे गिर जाता है तो उसका अंगीकार कि मैं विष्वास करता हूं, एक झूठ बन जाता है।

  1. लोग जो मृत्यु की ओर ले जाने वाले पापों को करते है।

1 यूहन्ना 5:16 बताता है ए पाप ऐसा भी होता है जिसका फल मृत्यु है इस के विषय में मैं बिनती करने के लिये नहीं कहता।(There is a sin leading to death. I am not saying that you should pray about that.”)

हमे उन लोगों को मेहनत से उत्साहित करना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए जिन्होंने ऐसे पाप किए हैं जो मृत्यु की ओर नही ले जाते और पापों को दूर करने में उनकी मदद करनी है। लेकिन ऐसे अन्य पाप भी हैं जो मृत्यु की ओर ले जाते हैं।(There are sins leading to death) फिर किस तरह के पाप, लोगों को मृत्यु की ओर ले जाते हैं?(Which sins that leads to death).

मत्ती 12ः31 में यीशु ने हमें स्पष्ट रूप से याद दिलाया, इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि मनुष्य का सब प्रकार का पाप और निन्दा क्षमा की जाएगी, पर आत्मा की निन्दा क्षमा न की जाएगी और फिर से लूका 12:10 में, जो कोई मनुष्य के पुत्र के विरोध में कोई बात कहे, उसका वह अपराध क्षमा किया जाएगा, परन्तु जो पवित्र आत्मा की निन्दा करे उसका अपराध क्षमा न किया जायेगा।
पवित्र आत्मा की निन्दा का मतलब पवित्र आत्मा के खिलाफ बोलना और पवित्र आत्मा को शैतान या दुष्ट कहना है और पवित्र आत्मा द्वारा किए गए परमेश्वर के कार्यों को दुष्ट आत्मा और शैतान के कार्य बताना है।
पवित्र आत्मा के साथ हस्तक्षेप करने का मतलब साफ तौर से पवित्र आत्मा के कार्यों को देखने के बाद भी किसी के अपने बुरे विचारों के कारण परमेष्वर के कार्यो का इंकार करने के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को रोकना है।

उदाहरण के लिए, आधारहीन अफवाहें फैलाना और पवित्र आत्मा के कार्यों से भरी एक मंडली को बेबुनियादी आरोपो को लगाने के द्वारा विधर्मी कहकर बुलाना पवित्र आत्मा के साथ हस्तक्षेप करने का एक कार्य है। यह वास्तव में गंभीर और भयानक पाप है, क्योंकि यह सृष्टिकर्ता परमेश्वर के साथ हस्तक्षेप करने और उसके राज्य को पूरा होने से रोकने के लिए चुनौती देना है।

जो लोग इसे और आगे ले जाते हैं और योजनाओं के साथ आते हैं और वास्तव में उन कार्याे को करते है, जिससे पवित्र आत्मा के खिलाफ ईश निंदा की भावना होती है तो यह पवित्र आत्मा के खिलाफ बोलने का पाप होगा।
मरकुस 3:20-30 में प्रदर्शित एक दृश्य है जिसमें यहूदी पवित्र आत्मा की निंदा, हस्तक्षेप, और पवित्र आत्मा के खिलाफ बोलते हैं। जिन लोगों ने यीशु की खबर सुनी थी, उनमें से अच्छे लोगों ने उन पर विश्वास किया और परमेश्वर को महिमा दी। हालाँकि, दुष्ट लोग बुरी अफवाहें पैदा करने और उन्हें फैलाने में व्यस्त थे और इस तरह के प्रयास को शास्त्रियों और फरीसियों द्वारा प्रमुखता से सुनाया गया, जिन्होंने पवित्र शास्त्र के अपने गहन ज्ञान का दावा किया था। उन्होंने कहा, उसका चित्त ठिकाने नहीं है और उसमे शैतान है।

यीशु ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनसे दृष्टान्तों में बात की, शैतान क्योंकर शैतान को निकाल सकता है? और यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य क्योंकर स्थिर रह सकता है? और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर क्योंकर स्थिर रह सकेगा? और यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह क्योंकर बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता है। क्योंकि दुष्ट आत्माओं के संसार में भी सख्त आदेश है, दुष्ट आत्मा दूसरे लोगो में से दुष्ट आत्मा को बाहर नहीं निकालते हैं, और शैतान खुद को ही बाहर नहीं निकालता है।

इसके अलावा, जैसा कि यीशु आगे बताता है 28-29 वचन में, मैं तुम से सच कहता हूं, कि मनुष्यों की सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी। परन्तु जो कोई पवित्रात्मा के विरूद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा वरन वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है, कोई कैसे उद्धार प्राप्त कर सकता है यदि उसने परमेश्वर के कार्यों के खिलाफ निंदा की है, हस्तक्षेप किया है और उनके खिलाफ में बोला है और उन्हें दुष्ट आत्मा के कार्य कहा है।

परमेश्वर जो कल, आज और हमेशा एक सा है, जो आज भी उन लोगों के माध्यम से चिन्ह और चमत्कार दिखाता है, जिनसे वह प्रसन्न है (यूहन्ना 4:48), और उनके माध्यम से अपने अस्तित्व और उपस्थिति की पुष्टि करता है। इसलिए, आपको पवित्र आत्मा के विरूद्ध निंदा और हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि इस संदेश के माध्यम से आपको यह विश्वास हो जाएगा कि कोई व्यक्ति परमेश्वर में विश्वास के बावजूद भी उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता है, और उसेे मृत्यु के इस मार्ग से दूर रहना चाहिए, और सीधे रास्ते का अनुसरण करते हुए स्वर्ग में सुरक्षित पहुंचें!

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