The Providence in Jesus Wearing the Crown of the Thorns

यीशु का कांटो का मुकुट पहनने में प्रावधान – क्रूस का संदेश (13)। The Providence in Jesus Wearing the Crown of the Thorns – Message of Cross (13)

और सिपाही उसे किले के भीतर आंगन में ले गए जो प्रीटोरियुन कहलाता है, और सारी पलटन को बुला लाए और उन्होंने उसे बैंजनी वस्त्र पहिनाया और कांटों का मुकुट गूंथकर उसके सिर पर रखा। (मरकुस 15: 16-17)।

सभी मनुष्य पापी बन गये थे। यीशु धरती पर आया और उसने हमें पापों से छुड़ाने के लिए बहुत सी पीडाऐं सही। यदि हम जान पायें कि यीशु ने हमारे लिए क्या किया है, तो हम परमेश्वर के प्रेम की गहराई को और अधिक महसूस कर सकते हैं और एक उत्साही मसीही जीवन जी सकते हैं। आइऐं अब हम यीशु का कांटो का मुकुट पहनने में प्रावधान के बारे मे जाने ।(The Providence in Jesus Wearing the Crown of the Thorns)

  1. क्या कारण है कि यीशु ने कांटों का ताज पहना और लहू बहाया।(The Providence in Jesus Wearing the Crown of the Thorns)

परमेश्वर के पुत्र के रूप में यीशु का सम्मान और महिमा का मुकुट पहनने के लिए समझ में आता है। हालाँकि, अपनी पीडा के बीच में यीशु ने प्रबल तेज कांटों वाला मुकुट पहना। जैसे-जैसे लंबे और मजबूत कांटे यीशु के सिर में घुसे, वैसे-वैसे उसकी खोपड़ी के फटने का दर्द, और उस बहते हुए लहू के साथ उसका चेहरा लहू से तरबतर हो गया। क्यों यीशु ने कांटों का मुकुट पहना और अपना लहू बहाया? यह मनुष्य के पापों की क्षमा के लिए किया गया था, जो पाप उन्होंने अपने सोच-विचारों से किए थे।

मनुष्य के मस्तिष्क के भीतर एक याददाष्त प्रणाली है जो ज्ञान को संग्रहीत और लागू करती है। जन्म से एक व्यक्ति ने जो भी जानकारी देखी, सुनी और सीखी है, वह बहुत हद तक भावना के साथ संग्रहित है, और यह ज्ञान है। प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थितियां और वातावरण जिसमें प्रत्येक व्यक्ति बड़ा हुआ है और शिक्षित हुआ है, वह एक-दूसरे व्यक्ति से भिन्न होते है। भले ही एक ही वातावरण में दो लोगों को एक ही व्यक्ति द्वारा शिक्षित किया गया हो, लेकिन जिस तरह की भावना के साथ प्रत्येक व्यक्ति ने जानकारी को स्वीकार किया है, वह अलग है और यही कारण है कि उनके पास मूल्यों और मापदण्डों के अलग-अलग समूह होंगे जिसके द्वारा वे बुराई और भलाई में अंतर करते हैं।
विचार आवश्यकता के आधार पर ज्ञान का पुनरुत्पादन है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के पास जो ज्ञान है वह अलग है, लोग अलग-अलग तरह से सोचेंगे, भले ही वे एक ही घटना के साक्षी हों। यह अंतर इस कारण है कि जिस देश में आपने ज्ञान अर्जित किया है, उसकी संस्कृति दूसरे में आलोचना का विषय बन सकती है। जो आपने अपनी मातृभूमि में सांस्कृतिक रूप से अनुचित होना सीखा है वही, वह दूसरे में उचित माना जा सकता है। इसके अलावा, चूंकि इस संसार में अधिकांश लोगों के सोच-विचार शैतान द्वारा शासित हैं, वे अक्सर सत्य के विरोध में होते हैं।

उदाहरण के लिए, जब किसी और की प्रशंसा की जाती है, तो शैतान असत्य को नियंत्रित करता है और लोगों में असंतोष या निराशा की भावना लाता है। यदि लोगों को केवल वो ज्ञान होता जो सत्य का है, तो शैतान उनके विचारों को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं होगा, वे हमेशा सत्य में आनन्दित हो सकते थे। इस प्रकार, हमें मेहनत से वचन को सुनना चाहिए और उसकी रोटी बनाना चाहिए। हम आत्मा और सच्चाई में परमेश्वर की आराधना करके और केवल हां और आमीन के साथ वचन को स्वीकार करके खुद को बदल सकते हैं।

  1. विचारों द्वारा किए गए पापों को कैसे दूर करें और कैसे आत्मिक विचार रखें?

जब परमेश्वर के वचन को सुनते हैं, तो कुछ लोग कहेंगे आमीन, यदि संदेश उनके विचारों के अनुरूप हैं। हालाँकि, यदि संदेश उनके ज्ञान या अनुभव से सहमत नहीं है, तो वे इसे स्वीकार करने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।

हमें बाइबल में एक दृश्य मिलता है जिसमें यीशु ने अपने चेलों को क्रूस उठाने के प्रावधान को बताते और पतरस ने जवाब देते हुए कहा था, हे प्रभु, परमेश्वर न करे तुझ पर ऐसा कभी न होगा। यह अपने शिक्षक के प्रति प्रेम में बोला गया अनुयायी की एक विचारोत्तेजक टिप्पणी की तरह लग सकता है, लेकिन पतरस के शब्द शरीर पर निर्धारित उसकी मानसिकता का परिणाम था जो परमेश्वर की इच्छा को पूरा होने से रोकने की मांग थी। उस ने फिरकर पतरस से कहा, हे शैतान, मेरे सामने से दूर हो तू मेरे लिये ठोकर का कारण है क्योंकि तू परमेश्वर की बातें नहीं, पर मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।( मत्ती 16:23)

जैसा कि अभिलिखित किया गया है, परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध जो विचार हैं वे शारीरिक विचार हैं। शारीरिक लोगों के लिए, शरीर पर केन्द्रित मन बुद्धिमान और भला लग सकता है, लेकिन यह परमेश्वर के विरोध में है और इसका उससे कोई लेना-देना नहीं है। रोमियों 8ः7 में लिखा है, क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के आधीन है, और न हो सकता है।” दूसरे शब्दों में, हमें सभी शारीरिक विचार और ज्ञान और सूचनाओं को निकाल फेंकना है जिसे हम ठीक समझते थे, यदि यह परमेश्वर की इच्छा के विपरीत है (2 कुरिन्थियों 10: 5)।

परमेश्वर से मिलने के बाद से, मैंने कभी भी शारीरिक विचारों को मिलाकर उसके वचनों पर संदेह नही किया। मैं बिना किसी संदेह के विश्वास कर सकता था कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है क्योंकि मैंने परमेश्वर की सामर्थ का अनुभव किया, जिसने मुझे मेरे सभी बीमारियों से एक ही बार में चंगा कर दिया। उस विश्वास के साथ, मैं किसी भी प्रकार की स्थिति में केवल प्रार्थना के द्वारा परमेश्वर पर निर्भर रहा और जैसा मैंने विश्वास किया उसने अद्भुत कार्यों को दिखाया। जब हम बिना शारीरिक विचारों के केवल परमेश्वर पर निर्भर रहते हैं, तो वह निश्चित रूप से हमारे लिए कार्य करेगा।

अपने सोच-विचारों से होने वाले सभी पापों को दूर करने के लिए, हमें सबसे पहले अपने हृदय को पवित्र बनाना चाहिए। 1 यूहन्ना 2:16 में यह हमें बताता है, क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है।

इस संसार के मार्गों पर चलने के द्वारा, जब हृदय बुराई से भरा होता है तो लोगों का शारीरिक विचारों को रखना स्वाभाविक है। जब जहां शरीर की अभिलाषा होती है, सांसारिक लालसा और संसार की चीजों की इच्छा जो आंखों को प्रसन्न करती है वो परमेश्वर की इच्छा के विपरीत है। लोग तब स्वाभाविक रूप से इस तरह की लालसा का पीछा करते है और जब पापी मनुष्य की लालसा और तेज हो जाती हैं, तो वो और अधिक शारीरिक कार्य करने के लिए मजबूर हो जाते हैं (गलातियों 5:19-21)। आंखों की अभिलाषा एक गुण है जो हृदय को उस चीज के माध्यम से उत्तेजित करती है जिसे व्यक्ति इंद्रियों के माध्यम से देखता है, सुनता है और अनुभव करता है जिसके कारण वह शरीर की चीजों की और ज्यादा लालसा रखने लगता है। आँखों की अभिलाषा के कारण, लोग सांसारिक हो जाते हैं और तेजी से वासनापूर्ण चीजों की तलाश करते हैं।

जीवन का घमंड एक गुण है जो भी सुख उसके पास इस संसार में है उन चीजो का घमंड करना। यह जीवन का घमंड लोगों को खुद को ऊंचा और घमंड करने के लिए प्रेरित करता है, पहचान प्राप्त करना, प्रसिद्धि और अधिकार प्राप्त करने को उकसाता है। एक बार जब आप शरीर की अभिलाषा, आँखों की अभिलाषा, और जीवन के घमंड को बाहर निकाल देते हैं, तो आप उन आत्मिक विचारों को रखने में सक्षम होंगे जिनसे परमेश्वर प्रसन्न होता हैं।

  1. परमेश्वर स्वर्ग में हमारे लिए सुंदर मुकुट तैयार करता हैं।

क्योंकि यीशु ने हमारे लिए कांटों का मुकुट पहना, इसलिए हमे हमारे पापों के लिए क्षमा किया गया, जो हमने सोच-विचारों में किए थे और हम स्वर्ग में प्रवेश करने पर सुंदर मुकुट पहनने के योग्य होंगे। वहां विभिन्न प्रकार के मुकुट हैं जो हमारे लिए तैयार किए गए हैं। हम में से प्रत्येक को जिस प्रकार का मुकुट प्राप्त होगा, वह बात पर निर्धारित होगा, कि हमने किस प्रकार का जीवन जीया है।

उदाहरण के लिए, ऐसे लोगों के लिए अविनाशी मुकुट हैं जिन्होंने प्रभु को स्वीकार करने और सत्य सुनने के बाद अपने पापों को बाहर निकालने के लिए संघर्ष किया है (1 कुरिन्थियों 9:25) महिमा का मुकुट उन लोगों के लिए है जो अपने पापों को दूर कर चुके हैं, परमेश्वर के वचन अनुसार जीयें, और उसे महिमा दी (1 पतरस 5: 4) और जीवन का मुकुट उन लोगों के लिए, जिन्होंने सबसे बढकर परमेश्वर से प्रेम किया है, वे मृत्यु के बिंन्दु तक परमेश्वर के प्रति विश्वासयोग्य रहे और हर प्रकार की बुराई को दूर कर के पवित्र हुए (याकूब 1:12 प्रकाशितवाक्य 2:10)। धार्मिकता का मुकुट भी है उन सभी के लिए जो पूरी तरह से पवित्र हो गए हैं और और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला विश्वास के साथ जिन्होंने पूरी तरह से परमेश्वर द्वारा दिए गए कार्यो को पूरा किया (2 तीमुथियुस 4: 8) ।

प्रकाशितवाक्य 4: 4 में स्वर्गीय “प्राचीनों” का “सोने का मुकुट” पहनने का उल्लेख है। यहाँ, प्राचीन उन लोगों को संदर्भित करते हैं, जिनके पास सोने जैसा, अपरिवर्तनीय विश्वास है, जिसे परमेश्वर पहचानते हैं, जो पूरी तरह से पवित्र हो गए हैं, और जो सभी पहलुओं में वफादार रहे हैं। इस बात पर निर्भर करते हुए कि वो किस हद तक पवित्र थे और वो कितने विश्वासयोग्य थे, परमेश्वर उनमें से प्रत्येक को विभिन्न मुकुटों से पुरस्कृत करेंगे।

मसीह में भाइयों और बहनों, कांटों का मुकुट पहनकर, यीशु ने हमें न केवल उन पापों से छुटकारा दिलाया, जो हम अपने सोच-विचारों में किये, लेकिन उन्होंने हमें स्वर्ग में सुंदर मुकुट पहनने की अनुमति भी दी। मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप शारीरिक विचारो को नष्ट कर दें जो परमेश्वर के विरोध में उठते है और आत्मिक विचारों के साथ उसका पालन करें और स्वर्ग में सूर्य के समान चमकने वाली महिमा को प्राप्त करें ।

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