क्रूस का संदेश (6) भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष में प्रावधान। The Message of the Cross (6) The Providence in the Tree of the Knowledge of Good and Evil

तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को ले कर अदन की वाटिका में रख दिया, कि वह उस में काम करे और उसकी रक्षा करे, तब यहोवा परमेश्वर ने आदम को यह आज्ञा दी, कि तू वाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्य मर जाएगा (उत्पत्ति 2ः15-17)।

जो लोग मनुष्य खेती के बारे में परमेश्वर के गहरे प्रावधान को नहीं जानते हैं वे अक्सर पूछ सकते हैं, परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वाटिका में क्यों रखा और मनुष्य को विनाश के मार्ग पर क्यों ले गया?(what is the providence in the Tree of the knowledge of Good and Evil )

प्रेम के परमेष्वर ने जानबूझकर मनुष्यजाति को मृत्यु के मार्ग पर ले जाने के लिए भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को वाटिका में नहीं रखा। तब, परमेश्वर ने किस उद्देश्य के लिए अदन की वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष लगाया?

(Why God put tree of knowledge of good and evil )

  1. पहले मनुष्य, आदम को दी गई आशीष और चेतावनी।

हालाँकि रचना के समय पहला मनुष्य आदम, शारीरिक रूप से एक जवान मनुष्य था, पर मानसिक रूप से वह एक नवजात शिशु की तरह था। इसलिए, जब वह अदन की वाटिका में था, तो उसे परमेश्वर के बारे में, आत्मिक क्षेत्र, सत्य, भलाई, ज्योति और इसी तरह की चीजों के साथ-साथ आवश्यक ज्ञान सहित आत्मिक ज्ञान भी सीखने की प्रक्रिया से गुजरना पडा। जिससे वह सारी सृष्टि पर शासन कर सके। ऐसी प्रक्रिया के बाद, सारी सृष्टि के स्वामी के रूप में, आदम ने सभी चीजों पर शासन करने और उन्हें वश में करने के लिए आवश्यक योग्यताएँ प्राप्त कर ली थीं।

जैसा कि परमेश्वर ने उत्पत्ति 1ः28 में आदम से कहा, फूलो-फलो, और पृथ्वी में भर जाओ, और उसको अपने वश में कर लो” पहले मनुष्य ने बहुत से बच्चों को जन्म दिया और इस तरह वह “फलदायी” हुआ। और सभी चीजों के स्वामी के रूप में उनके पास लंबे समय तक महान अधिकार था। फिर भी, परमेश्वर ने मनुष्य को स्वतंत्र इच्छा दी और उसे एक काम करने से रोका। परमेश्वर ने उसे भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल न खाने की आज्ञा दी। हालाँकि, एक लंबा समय बीत जाने के बाद, आदम और हव्वा परमेश्वर की आज्ञा को ध्यान में नहीं रख सके और उन्होंने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया।

  1. वह प्रक्रिया जिसके द्वारा पाप मनुष्य के अंदर आया।

उत्पत्ति 3ः1 से निम्नलिखित पहले मनुष्य आदम के पाप में आने की प्रक्रिया को विस्तृत रूप से बताता है।

सर्प उस वाटिका के सभी पशुओं में से अधिक चालाक था जिसे परमेश्वर ने बनाया था, और उसने स्त्री हव्वा की परीक्षा ली। आज अधिकांश लोगों का संापों से अत्यंत घृणा करने का कारण यह है कि सर्प मानव जाति को मृत्यु की ओर ले गया और इस प्रकार वे स्वाभाविक रूप से संापो से घृणा करते हैं।

परीक्षा से पहले वाटिका में, आज के विपरीत, सर्प मनमोहक और आंखो को प्यारा लगता था। यह इतना चालाक भी था कि लोगों का दिल भी जीत सकता था ।
एक दिन, सर्प ने स्त्री से पूछा, क्या वास्तव में, परमेष्वर ने कहा है, कि तुम वाटिका के किसी भी पेड़ से नहीं खाना? उत्तर में, स्त्री ने सर्प से कहा, वाटिका के पेड़ों के फल हम खा सकते हैं परन्तु उस वृक्ष के फल में से जो वाटिका के बीच में है, परमेश्वर ने कहा है, कि उस में से न खाना, और न छूना, नहीं तो मर जाओगे।

जबकि परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से कहा था, तुम अवश्य मरोगे, हव्वा ने सर्प से कहा कि परमेश्वर ने कहा था, तुम मर जाओगे। परमेश्वर के निर्देश की अवहेलना और बिगड़ते हुए, हव्वा ने परमेश्वर के वचनों को बदला और यहाँ तक कि तुम निश्चित रूप से मरोगे को तुम मरोगे में बदल दिया। सर्प जानता था कि यह किस तरह का अवसर है और उसने अवसर को प्राप्त करने पर हव्वा से कहा, तुम निश्चित रूप से नहीं मरोगे। क्योंकि परमेश्वर जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।”

अब जब हव्वा सर्प की परीक्षा में गिर गई थी, षरीर की अभिलाषा, आँखों की अभिलाषा और जीवन का घमण्ड शुरू हो गया और पेड़ का फल खाने के लिए अच्छा था और देखने मंे मनभाऊ है। हव्वा ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया और उसका फल आदम को भी दिया।

आत्मिक क्षेत्र की व्यवस्था के अनुसार, जो कहता है, पाप की मजदूरी मृत्यु है (रोमियों 6ः23), परमेश्वर का वचन तुम निश्चय मरोगे मनुष्य पर लागू किया गया जिसे अब अपने पाप के लिए भुगतान करना था। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं था कि आदम और हव्वा का जीवन उनके द्वारा भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाने के तुरंत बाद समाप्त हो गया।

जब परमेश्वर ने कहा, तुम निश्चय मरोगे, उसने न केवल मनुष्य की शारीरिक मृत्यु का उल्लेख किया, बल्कि आत्मा की मृत्यु का भी उल्लेख किया, जो मनुष्य का स्वामी है परमेश्वर और आदम के बीच बातचीत का अंत आदम की आत्मा की मृत्यु के समान है। इसके अलावा, उसके पाप के बाद आदम का प्रत्येक वंशज पापी बन गया और मृत्यु के अधीन हो गया और पृथ्वी पर सब कुछ शापित हो गया (उत्पत्ति 3ः17)।

सर्प को अन्य सभी प्राणियों की तुलना में अधिक कठोर शाप दिया गया था। उत्पत्ति 3ः14 में परमेश्वर ने सर्प से कहा, तू पेट के बल चलेगा, और जीवन भर मिट्टी खाऐगा। आत्मिक रूप से, सर्प यहाँ शत्रु, दुष्ट और शैतान को दर्शाता है जबकि मिट्टी उस मनुष्य का प्रतीक है जो भूमि की मिट्टी से बना है।

दूसरे शब्दों में, यह कहने के लिए कि सर्प मिट्टी खा रहा होगा, इसका अर्थ है कि शत्रु, दुष्ट और शैतान शासन करेंगे और पापो में बंधे हुए शारीरिक लोगों के लिए परीक्षा, क्लेश और पीड़ा लाएंगे। यही कारण है कि जो लोग इस संसार में गिर गए हैं, वे सभी प्रकार के दुखों से पीड़ित हैं, जो उन पर शत्रु, दुुष्ट और शैतान के अधिकार द्वारा लाए गए हैं।

  1. क्या कारण है कि परमेश्वर ने अदन की वाटिका में भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को रखा।

हालाँकि परमेश्वर पहले से जानता था कि आदम भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाएगा, फिर भी उसने वहाँ पेड़ लगाया क्योंकि परमेश्वर अभी भी आदम को सच्चा खुषी देना चाहता था।

अदन की वाटिका में रहते हुए आदम को दुःख का सामना नहीं करना पड़ा। परिणामस्वरूप आदम सच्ची खुशी को महसूस नही कर पाया और उसका अनुभव नहीं कर पाया। किसी को किसी चीज के वास्तविक मूल्य की सराहना करने के लिए, उसे उस चीज का अनुभव करना चाहिए जो उसके विपरीत है और सापेक्षता के माध्यम से सीखना चाहिए।

उदाहरण के लिए, यदि आप जन्म से कभी बीमार नहीं हुए हैं, तो आप बीमारी के कारण होने वाले कष्ट और दुःख की पीडा को पूरी तरह से नहीं समझ सकते हैं, न ही आप वास्तव में अच्छे स्वास्थ्य की महत्वता को समझ सकते हैं। केवल वे जो भूखे हैं, वे भोजन की बहुतायत को समझ सकते हैं, और केवल तभी जब बुराई और अंधकार होगा, लोग वास्तव में भलाई और ज्योति समझेंगे।

अदन की वाटिका में मृत्यु को देखे बिना, जो दुखों से रहित है, आदम परमेश्वर को नहीं समझ सका, जब उसने उससे कहा कि यदि वह भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से खाएगा तो वह मर जाएगा। जब उसने इस शापित संसार में भूख, ठंड, गर्मी, मृत्यु, अलगांव, पाप और बुराई से जुड़ी पीड़ा और दुख का अनुभव किया, तो आदम को आखिरकार एहसास हुआ कि अदन की वाटिका में उसका जीवन कितना खुशहाल और आनंदमय था।

किसी व्यक्ति का जीवन कितना भी भरपूर क्यों न हो, जब तक कि उसे अपने जीवन के सच्चे सुख का ज्ञान न हो, कौन कह सकता है कि वह एक अर्थपूर्ण जीवन जी रहा है? वास्तव में अर्थपूर्ण जीवन वह होगा जिसमें व्यक्ति को क्षण भर के लिए कष्ट सहने पर भी सुख का अनुभव होता है। इसलिए परमेष्वर ने भले और बुरे के ज्ञान का वृक्ष लगाया। यह मनुष्य का दुःख और पीड़ा का अनुभव करके सापेक्षता को पहचानने और समझने की अनुमति देना था।

आदम ने अपनी स्वतंत्र इच्छा से भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खाया, और उसके पापों के परिणामस्वरूप, मानवजाति ठंड, गर्मी, बीमारी, गरीबी, भूख, अलगांव, मृत्यु से उत्पन्न पीड़ाओं के बीच रहने लगी है। और जैसे जब हम इस सापेक्षता को सीखने के बाद स्वर्ग में प्रवेश करते हैं और मानव जुताई से गुजरते हैं, तो हम महसूस करेंगे कि स्वर्ग में जीवन कितना अद्भुत है, हृदय से परमेष्वर को धन्यवाद देंगे, और सदा आनंद और खुषी में रहेंगें।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, परमेश्वर ने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष को लगाया, उसने मनुष्यों की खेती जुताई की और उसने सभी मनुष्यों, पापियों के लिए उद्धार प्राप्त करने का मार्ग तैयार किया है। जैसा कि 2 कुरिन्थियों 4ः17 हमें बताता है, क्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। भले ही हम इस संसार में दुःख और क्लेश का क्षण भर के लिए सामना करें, हम अनन्त महिमा का आनंद लेंगे, अवर्णनीय रूप से महिमामय स्वर्ग में महिमा सभी तुलनाओं से कहीं अधिक है।

मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप उद्धार के मार्ग को समझेंगे, उद्धार का आनंद और खुशी प्राप्त करेंगे, और अंत में अनन्त स्वर्ग में रहेंगे।

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