सब्त क्या है और इसे कैसे पवित्र रखे (1)

सब्त क्या है और इसे कैसे पवित्र रखे

सीनियर पास्टर डॉ. जेरॉक ली

तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना।

छः दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब काम काज करना;

परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है। उस में न तो तू किसी भांति का काम काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकों के भीतर हो।

क्योंकि छः दिन में यहोवा ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उन में है, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया॥ (निर्गमन 20ः8-11)।

’सब्त’ विश्राम और आराधना के लिए अलग रखा गया दिन है, और नए नियम के समय में इसे ’प्रभु का दिन’ कहा जाता है।

सब्त को रखना एक बुनियादी क्रिया है जो दर्शाती है कि एक व्यक्ति परमेश्वर की संतान है और एक अन्य बुनियादी चिन्ह के साथ स्वर्ग की अपनी नागरिकता साबित करता है, संपूर्ण दशमांश देना। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह दस आज्ञाओं में से एक है जिसे परमेश्वर के बच्चों को पालन करना चाहिए।

  1. सब्त की षुरवात कब हुई और इसका अर्थ

उत्पत्ति 2ः3 में लिखा है, और परमेश्वर ने सातवें दिन को आशीष दी और पवित्र ठहराया; क्योंकि उस में उसने अपनी सृष्टि की रचना के सारे काम से विश्राम लिया

परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी को छः दिन मे बनाया और सातवें दिन विश्राम किया। उसने इस सातवें दिन को आशीश दी और उसे पवित्र किया। और परमेश्वर ने इस्राएलियों को मिस्र से छुड़ाने के बाद सब्त को मानने की आज्ञा दी, जैसा निर्गमन 20 में लिखा है।

जब परमेश्वर ने दस आज्ञाएं दीं, तब उस ने कहा, सब्त के दिन को स्मरण रखना, और उसे पवित्र रखना… क्योंकि छः दिन में यहोवा ने आकाश और पृथ्वी, समुद्र और जो कुछ उन में है, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इसलिए यहोवा ने सब्त के दिन को आशीष दी और उसे पवित्र ठहराया।”

सब्त का पालन करके हम सृष्टिकर्ता के रूप में परमेश्वर में अपना विश्वास दिखाते हैं। इसके अलावा, इसका मतलब है कि हम स्वीकार करते हैं कि परमेश्वर विशाल आत्मिक क्षेत्र के साथ-साथ भौतिक संसार का मालिक और स्वामी है। अर्थात्, सब्त को पवित्र रखना परमेश्वर के आत्मिक अधिकार को स्वीकार करने का कार्य है।

  1. क्या कारण है हम सब्त का पालन करते हैं

निर्गमन 31ः13 में, तू इस्त्राएलियों से यह भी कहना, कि निश्चय तुम मेरे विश्रामदिनों को मानना, क्योंकि तुम्हारी पीढ़ी पीढ़ी में मेरे और तुम लोगों के बीच यह एक चिन्ह ठहरा है, जिस से तुम यह बात जान रखो कि यहोवा हमारा पवित्र करनेहारा है।” इस्राएल के लोग सब्त का पालन करने के द्वारा परमेश्वर के पवित्र लोगों के रूप में अलग किए गए। परमेश्वर ने उन्हें परीक्षाओं और आजमाइषो और तरह-तरह की विपत्तियों से बचाया।

यह आत्मिक सिद्धांत आज भी उसी तरह लागू होता है। हम केवल तभी सुरक्षित और आशीषित हो सकते हैं जब हम सब्त का पालन करके परमेश्वर की सन्तान के रूप में उसके हो जाते हैं। सुरक्षित और धन्य होना महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात हमारी आत्मा का उद्धार है।

निर्गमन 31ः14-15 कहता है, इस कारण तुम विश्रामदिन को मानना, क्योंकि वह तुम्हारे लिये पवित्र ठहरा है; जो उसको अपवित्र करे वह निश्चय मार डाला जाए; जो कोई उस दिन में से कुछ कामकाज करे वह प्राणी अपने लोगों के बीच से नाश किया जाए।


छः दिन तो काम काज किया जाए, पर सातवां दिन पर मविश्राम का दिन और यहोवा के लिये पवित्र है; इसलिये जो कोई विश्राम के दिन में कुछ काम काज करे वह निश्चय मार डाला जाए। उन्हें यह बताना था कि परमेश्वर के चुने हुए इस्राएलियों को भी उसी क्षण से मृत्यु में गिरना पड़ा जब उन्होंने सब्त नहीं मनाया क्योंकि इसका अर्थ है कि उनका परमेश्वर से कोई लेना-देना नहीं था।

यदि हम सब्त का पालन करने की आज्ञा देने में परमेश्वर की सच्ची मंशा को समझते हैं, तो हम इसे डर से पालन करने के लिए बाध्य महसूस नहीं करेंगे । परमेश्वर ने हमें आज्ञा दी कि हम सब्त का पालन करें ताकि उसके बच्चों के प्रति उसके प्रेम के साथ उन्हे सच्चा विश्राम मिले । यदि हम परमेश्वर के हृदय और प्रेम को महसूस करते हैं, तो हम छह दिनों तक कड़ी मेहनत कर सकते हैं

और इन सप्ताह के दिनों में हम अपने दिल, दिमाग और इच्छा से सब्त की प्रतीक्षा करते हैं। फिर सब्त के दिन हम आत्मा और सच्चाई से आराधना करेंगे, और मसीह में अन्य भाइयों और बहनों के साथ संगति करेंगे, और परमेश्वर को अपना धन्यवाद और आनन्द अर्पित करेंगे।

  1. क्या कारण है कि हम रविवार को सब्त के रूप में मानते हैं

पुराने नियम के समय में, शनिवार, जो कि सृष्टि का सातवाँ दिन है, को सब्त के रूप में रखा गया था। लेकिन जब से यीशु, परमेश्वर का पुत्र, देह में पृथ्वी पर आया, उद्धारकर्ता के कर्तव्य को पूरा किया, और रविवार को फिर जी उठा, इसे नए नियम के समय में सब्त के रूप में रखा गया है।

मरकुस 16ः9 कहता है, “सप्ताह के पहिले दिन तड़के उठने के बाद, वह पहिले मरियम मगदलीनी को दिखाई दिया, जिस से उस ने सात दुष्टात्माओं को निकाला था।“ क्योंकि सप्ताह का सातवाँ दिन शनिवार है जिसे पुराने नियम के समय में सब्त के रूप में रखा गया था, सप्ताह का पहला दिन रविवार है। शुक्रवार को दोपहर 3 बजे यीशु को सूली पर चढ़ाया गया। और दफनाया गया, और वह सूली पर चढ़ाए जाने के तीसरे दिन रविवार की सुबह में फिर से जीवित हो गया।

उत्पत्ति 1ः3 कहता है, तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला होः तो उजियाला हो गया। यह उजियाला आत्मिक उजियाला था, जो परमेश्वर की सामर्थ और अधिकार का प्रतीक है। परमेष्वर ने पूरे ब्रह्मांड में अपनी संप्रभुता की घोषणा की। यह यीशु मसीह की संप्रभुता की घोषणा भी थी क्योंकि वह ’सच्ची ज्योति’ है जो परमेश्वर के रूप में अस्तित्व में था और वह वचन है जो मांस बन गया और पृथ्वी पर आया जैसा कि यूहन्ना 1ः 9 में कहा गया है, सच्ची ज्योति जो हर एक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आनेवाली थी।

इसलिए मत्ती 12ः8 में लिखा है, “क्योंकि मनुष्य का पुत्र सब्त के दिन का प्रभु है।“
इसका अर्थ है कि हमारा प्रभु सच्ची ज्योति है और वह सब्त का स्वामी है। जिस तरह सृष्टि के पहले दिन रविवार को प्रकाश था, प्रभु का दिन जो सप्ताह का पहला दिन है, वह दिन है जिस दिन प्रभु, जो कि सच्चा प्रकाश है, ने पूरी दुनिया में अपना प्रकाश डाला।

यह वह दिन था जब यीशु ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की और सभी मानव जाति के लिए उद्धार का मार्ग खोलने के लिए पुनरुत्थित हुआ। वह उन आत्माओं के लिए सच्चा प्रकाश बन गया जो अंधकार और मृत्यु में जी रही थीं। इस समय से हम रविवार को सब्त के रूप में, अर्थात् प्रभु के दिन के रूप में मनाते हैं। प्रभु के पुनरुत्थान के बाद ही हम सच्चे सब्त को रखने पाए थे।

परमेश्वर ने पुराने नियम में पहले ही उल्लेख किया है कि रविवार सब्त का दिन होगा। लैव्यव्यवस्था 23ः10-12 कहता है, “इस्राएलियों से कह, कि जब तू उस देश में प्रवेश करे जिसे मैं तुझे देने जा रहा हूं, और उसकी कटनी काटेगा, तब पहिली उपज का पूला ले आना अपनी फसल में से याजक को देना, वह पूले को यहोवा के साम्हने हिलाया जाए, कि वह तुम्हारे ग्रहण योग्य हो, और विश्राम के दिन के दूसरे दिन याजक उसे हिलाए। यहोवा के होमबलि के लिथे दोषरहित वर्ष का हो।“

सब्त के अगले दिन बिना दोष के एक वर्ष का नर मेमना परमेश्वर के मेम्ने, हमारे प्रभु यीशु मसीह को संदर्भित करता है। पहला पूला पुनरुत्थान के पहले फल को संदर्भित करता है, जो कि यीशु मसीह भी है (1 कुरिन्थियों 15ः20)।

मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, पहले आदमी, आदम के पाप के बाद, सभी लोगों ने वह सच्चा आराम खो दिया जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था। मनुश्य की आत्मा, जो मनुश्य की स्वामी थीं, मर गईं। नतीजतन, परमेष्वर के साथ उनका संचार टूट गया था। यहाँ तक कि उन्हें खाने के लिए अपने जीवन भर परिश्रम करना पड़ा, और अंत में उन्हें अनन्त मृत्यु के लिए नरक में गिरना पड़ा।

जब नियत समय आया, तथापि, सूली पर चढ़ाए जाने में प्रभु के प्रेम में, उन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की और पुनरुत्थित हुए, और इस प्रकार उद्धार का मार्ग सभी लोगों के लिए खुल गया ।कोई भी जो यीशु मसीह पर विश्वास करता है और पवित्र आत्मा को उपहार के रूप में प्राप्त करता है, वह उद्धार, अनन्त जीवन, पुनरुत्थान और स्वर्ग की आशा का आनंद ले सकता है। हालाँकि, केवल जब हम प्रभु के दिन को पवित्र रखते हैं और परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करते हैं, तो हम अनन्त और पूर्ण विश्राम प्राप्त कर सकते हैं।

मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप सब्त को पवित्र रखेंगे और परमेश्वर की इच्छा को समझेंगे जो चाहता है कि सभी लोगों का उद्धार हो।

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