क्रूस का संदेश (9) क्यों केवल यीशु ही हमारा एकमात्र उद्धारकर्ता है ? (2) The Message of the Cross (9) Why Is Jesus Our Only Savior? (2)
और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें (प्रेरितों के काम 4:12)।
मानमिन समाचार के आखिरी प्रकाषन में, मैंने बताया था कि भूमि के छुटकारे के नियम (लैव्यव्यवस्था 25:23-27) के अनुसार, मनुष्यजाति के उद्धारकर्ता को पहले आत्मा, प्राण और देह वाला व्यक्ति होना चाहिए और दूसरा, वह आदम का वंशज नहीं होना चाहिए जिसने पाप किया था।
आइऐं आज हम तीसरी और चैथी योग्यताओं को देखें और उन कारणों का पता लगाएं कि क्यों केवल प्रभु यीशु ही उन्हें हमारे उद्धारकर्ता बनने के लिए उन सभी योग्यताओं को पूरा कर सका।
- ऐसा इसलिए है क्योंकि यीशु के पास दुष्ट षत्रु को हराने के लिए आत्मिक सामर्थ थी।
युद्ध के मैदान में बंदी बनाए गए संगी सैनिकों को बचाने के लिए और दुश्मन को हराने के लिए ताकत की आवश्यकता होती है। उसी तरह, मानव जाति को बचाने के लिए, जो सभी दुष्ट षत्रु के दास बन गये थे, आत्मिक सामर्थ की आवश्यकता थी जो दुष्ट षत्रु को हरा सके। आत्मिक क्षेत्र में, सामर्थ पापरहित होने से आती है। जिस प्रकार ज्योति द्वारा अंधकार को दूर भगाया जाता है, जब लोग बिना किसी पाप के पूरी तरह से ज्योति में रहते हैं, तो वे अंधकार से संबंधित दुष्ट आत्माओं को दूर कर सकते हैं।
पाप दो प्रकार के होते हैं मूल पाप और स्वयं के द्वारा किए हुए पाप। मूल पाप का अर्थ आदम और हमारे माता-पिता से प्राप्त पापपूर्ण गुणों से है और स्वयं के द्वारा किए गए पाप का अर्थ उन पापों से है जो लोग इस संसार में अपने जीवन के दौरान करते हैं। इस संसार के लोग यह मानते हैं कि किसी व्यक्ति का हृदय कितना भी बुरा क्यों न हो, जब तक वह बुरा हृदय बुरे कर्म प्रगट नहीं करता, उस व्यक्ति को पापी नहीं माना जाता। आत्मिक दृष्टि से, यधपि, एक व्यक्ति पहले से ही पापी है यदि उसके हृदय में पाप है (1 यूहन्ना 3:15 मत्ती 5:28)। जिस व्यक्ति ने कर्म या हृदय से एक बार भी पाप किया है, उसके पास मनुष्य जाति को बचाने की सामर्थ नहीं है।
इसके अलावा, आदम के पाप के बाद पैदा हुए सभी लोग मूल पाप के साथ पैदा होते हैं और अपने जीवन के दौरान पाप करते हैं। दूसरी ओर, यीशु का गर्भाधारण पवित्र आत्मा के द्वारा हुआ था और वह आदम का वंशज नहीं है। इस प्रकार, यीशु अंतर्निहित मूल पाप के बिना पैदा हुआ था और चूंकि उसने अपने जन्म के क्षण से ही परमेश्वर के वचन का पूरी तरह से पालन किया था, इसलिए यीशु ने धरती पर अपने जीवन के दौरान कोई भी पाप नहीं किया (इब्रानियों 7ः26, 1 पतरस 2ः22)।
इसलिए, यीशु के पास दुष्ट शत्रु से मानवजाति को बचाने की सामर्थ है और वह व्यवस्था के श्राप से बंधा नहीं है, जो यह बताता है कि पाप की मजदूरी मृत्यु है (रोमियों 6:23)। चूँकि वह पापरहित था, यीशु सभी पापियों को बचा सकता था और अपने आत्मिक अधिकार से, वह ब्रह्मांड की हर चीज पर शासन कर सकता था।
आत्मिक क्षेत्र के नियम का यह प्रावधान न केवल यीशु पर लागू होता है, बल्कि परमेश्वर की सभी संतान पर भी लागू होता है जो यीशु में विश्वास करते हैं। जो कोई परमेश्वर से प्रेम करता है और उसके वचन के अनुसार जीता है, उसके पास आत्मिक सामर्थ है, ताकि जब वह यीशु मसीह के नाम से दुष्ट, शत्रु और शैतान को बाहर निकालता है, तो उनके सामने कोई जगह न होती, उन्हें झुकना पडता है और छोड़कर जाना पड़ता है ।
ऐसे अनुभव मुझे अनगिनत बार हुए हैं। प्रभु पर विश्वास करने से पहले, मैं हमेशा दवा और अस्पताल के दौरे के लिए भुगतान करने के लिए संघर्ष करता था क्योंकि मैं सात वर्षों से कई तरह की बीमारियों से पीड़ित था। हालाँकि, प्रभु को स्वीकार करने के बाद, मैं वचन के अनुसार जी रहा हूँ और मेरा पूरा परिवार बिना अस्पताल गए सुरक्षित और स्वस्थ है।
इसके अलावा, जब मैंने यीशु मसीह के नाम से आज्ञा दी और प्रार्थना की, तो कैंसर, ल्यूकेमिया, एड्स, और कई अन्य सभी प्रकार की लाइलाज और लाइलाज बीमारियों से पीड़ित लोगों को चंगा किया गया, अनगिनत अंधे, बहरे और गूंगे पूरी तरह से ठीक हुए, कार्बन मोनोऑक्साइड गैस को बाहर निकाल दिया गया है, और दुष्ट आत्माओं को निकाल दिया गया।
मानव जाति के इतिहास में कोई और नहीं? यीशु के अलावा? जो उद्धारकर्ता के लिए योग्यता को पूरा नहीं कर सकता। बुद्ध, कन्फ्यूशियस और सुकरात जैसे सभी पुरुष आदम के वंशज के रूप में मूल पाप के साथ पैदा हुए थे केवल यीशु ही मनुष्यजाति का उद्धारकर्ता होने के योग्य है।
- ऐसा इसलिए है क्योंकि यीशु के पास प्रेम था जिसके द्वारा वह अपने जीवन का बलिदान कर सका।
यदि एक भाई को अपने कर्ज की अदायगी में अपराधी होने के लिए कानून द्वारा दंडित किया जाना है, तो वह सजा से बच सकता है यदि उसका धनी बड़ा भाई उसकी ओर से कर्ज चुकाता है। हालाँकि, उसके भाई की सारी दौलत का कोई अर्थ नहीं अगर वह अपने भाई से प्रेम नहीं करता। उसका भाई उसके कर्ज को तभी चुका सकता है जब वह अपने भाई से इतना प्रेम करे कि वह कर्ज चुका सके, भले ही उसे खुद नुकसान उठाना पड़े।
भूमि के छुटकारे के नियम के अनुसार भूमि को तभी छुड़ाया जा सकता है जब जमीन बेचने वाले का सबसे करीबी रिश्तेदार अपनेे प्रेम के साथ उसकी मदद करने को तैयार हो। मनुष्यजाति को उनके पापों से छुड़ाने के बारे में भी यही कहा जा सकता है।
भले ही यीशु उद्धारकर्ता के लिए पहली तीन शर्तों को पूरा करता है, प्रेम के बिना वह पापियों को उनके पापों से छुडा नहीं सकता था। मनुष्यजाति का उद्धारकर्ता बनने के लिए आवश्यक है कि वह सभी पापियों की ओर से मृत्यु की सजा के रूप में भारी मात्रा में पीड़ा और संकट से गुजरे। अंत में, यीशु के साथ ऐसा व्यवहार किया गया मानो वह अपराधियों में सबसे बुरा और सबसे दुष्ट था, सभी प्रकार के तिरस्कार और अवहेलना के अधीन, क्रूस पर चढ़ाया गया, और उसने अपना सारा लहू और पानी बहा दिया।
जबकि अपराधियों को मारने के कई तरीके हैं, आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार, उद्धारकर्ता जिसे पापियों को उनके पापों से छुड़ाना था, उन्हें न केवल मरना था बल्कि उसे लकड़ी के क्रूस पर लटकना था और मृत्यु तक लहू बहाना था। गलातियों 3ः13 में, मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है।
यहाँ, व्यवस्था का श्राप एक आत्मिक व्यवस्था को दर्षाता है जो रोमियों 6:23 में कहता है, पाप की मजदूरी मृत्यु है। मृत्यु के रूप में, व्यवस्था का शाप, आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार एक पापी पर आया, जिस तरह से उद्धारकर्ता को मनुष्यजाति को उनके पापों से बचाना था, वह भी आत्मिक क्षेत्र के नियम के अनुसार होना चाहिए। इसका अर्थ था कि उद्धारकर्ता को शापित पापियों की ओर से एक पेड़ पर लटका देना होगा।
यही बात उद्धारकर्ता के लहू बहाने पर भी लागू होती है। लैव्यव्यवस्था 17ः14 में लिखा है, सब प्राणियों का जीवन उसका लहू है, जबकि इब्रानियों 9:22 हमें स्मरण दिलाता है, और व्यवस्था के अनुसार कोई कह सकता है, कि सब वस्तुएं लहू से शुद्ध की जाती हैं, और बिना लहू बहाए क्षमा नहीं है। क्योंकि लहू आत्मिक अर्थ में जीवन के समान है, पापियों को क्षमा करने और जीवन प्राप्त करने के लिए उद्धारकर्ता का लहू आवश्यक था।
फिर भी, मनुष्य को उसके पापों से मुक्त किया जा सकता है, न कि केवल किसी वृक्ष पर लटके हुए मनुष्य के लहू के द्वारा, बल्कि साफ और शुद्ध लहू के द्वारा, जिसमें पापी गुणों का कोई अंश नहीं है। आप क्या सोचते हैं, किस लिए, क्यों एक पापरहित मनुष्य दूसरों की ओर से इतनी क्रूर मौत मरेगा?
ऐसा बलिदान तभी किया जा सकता है जब व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपनी जान से ज्यादा प्रेम करे। वह केवल तभी उद्धारकर्ता बन सकता है जब वह पापियों से इतना प्रेम करता है कि उनकी ओर से दुखदायी पीड़ा को क्रूस पर उठा सके। मनुष्य जाति को ऐसा प्रेम दिखाते हुए, यीशु हमारा उद्धारकर्ता बन गया (रोमियों 5रू7-8)।
मसीह में भाइयों और बहनों, परमेश्वर का प्रेम बदलता नहीं है और न ही स्वार्थी है। उस प्रेम से, परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को अवज्ञाकारी पापियों के लिए भी दे दिया। यह एक सच्चा प्रेम है जिसके द्वारा यीशु उन पापियों के लिए अपना जीवन बलिदान कर सका जिन्होंने अपने उद्धारकर्ता का मजाक उड़ाया और क्रूस पर चढ़ाया।
मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप में से प्रत्येक स्पष्ट रूप से महसूस करेगें कि केवल यीशु ही हमारा उद्धारकर्ता है, यीशु मसीह को स्वीकार करें, और न केवल उद्धार प्राप्त करें बल्कि सच्चा विश्वास भी प्राप्त करें और वापस अनगिनत अन्य लोगों को उद्धार के मार्ग पर ले जाएं।
हमारे Youtube Channel से जुड़ने के लिए यहां – क्लिक करें
क्रूस का संदेश 10 को पढ़ने के लिए यहां – क्लिक करें