धन्य हैं वे जो दयावन्त हैं , क्योंकि उन पर दया की जाएगी। धन्यवचन (5)
धन्य हैं वे जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी। मत्ती 5:7
Blessed are the merciful for they will receive mercy. (Matthew 5:7)
लेस मिजरेबल्स के जीन वलजेन सच्चे प्रेम, दया और क्षमा के माध्यम से एक नया जीवन जीने पाए। जब हम दूसरों को दया से क्षमा करते हैं
तब हम दूसरों के हृदयों को प्रभावित कर सकते हैं और उन्हें बदलने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। अब, विशेष रूप से दया क्या है, जैसा कि किसी एक धन्यवचन में है?
- दयावन्त
दया हृदय से क्षमा करना, प्रार्थना करना और प्रेम से सलाह देना है जो आपके खिलाफ पाप करते हैं या जो आपको कठिन समय देते हैं।
यह भलाई के समान है जैसा कि गलातियो 5 में पवित्र आत्मा के 9 फलों में से एक में है, लेकिन यह उससे कहीं अधिक गहरा है।
भलाई, बुराई से मुक्त होनी चाहिए और पूर्ण भलाई की तलाश करना है। यह यीशु का हृदय है वह न झगड़ा करेगा, और न धूम मचाएगा और न बाजारों में कोई उसका शब्द सुनेगा।
वह कुचले हुए सरकण्डे को न तोड़ेगा और धूआं देती हुई बत्ती को न बुझाएगा। (मत्ती 12:19-20)।
आप उन्हें केवल इसलिए दंडित नहीं करते क्योंकि उन्होंने कुछ बुराई की है, लेकिन आप उन्हें सहन करते हैं ताकि उन्हें बचाया जा सके। यहां तक कि अगर वे पाप करते हैं, तो भी आप उन्हें पवित्र आत्मा के द्वारा उनके पापों का एहसास कराने और सत्य से बदलने की पूरी कोशिश करते हैं। आप उनकी प्रतीक्षा करते है और अंत तक उनके लिए करते है।
यहां तक कि अगर दूसरे बिना कारण के आपके साथ बुराई करते हैं, तो आप यीशु के हृदय से समझते हैं, माफ करते हैं और उन्हें सही रास्ते पर ले जाते हैं। यही दया है। आप अपने दृष्टिकोण में स्वयं की सेवा करने की कोशिश नहीं करते हैं, लेकिन आप खुद को दूसरों के स्थान पर रखते हैं, और इस तरह आप दूसरों पर दया कर सकते हैं।
यूहन्ना 8 में वह घटना है जिसमें यीशु ने व्यभिचार करने वाली स्त्री को क्षमा कर दिया। यीशु की परीक्षा लेने के लिए, शास्त्री और फरीसी उस स्त्री को ले आए जो व्यभिचार में पकड़ी गई थी। उन्होंने उस से पूछा, अब व्यवस्था में मूसा ने हमें ऐसी स्त्रियों पर पथराव करने की आज्ञा दी है, तो फिर तू क्या कहता हैं?
यीशु ने क्या किया? वह नीचे झुक गया और उसने अपनी उंगली से जमीन पर लिखा। उसने उन सामान्य पापों के नाम लिखे जो वहाँ इकट्ठे हुए लोगों ने किए थे। फिर वह खडा हुआ, और उन से कहा, जो तुम में निष्पाप हो, वही पहले उस पर पत्थर मारे।
यहूदी एक-एक करके चले गए और वह स्त्री के पास अकेला रह गया। उस स्त्री से उसने कहा, मैं भी तुझे दोषी नहीं ठहराता। जा, अब से पाप न करना। यह इस स्त्री के लिए एक ना भूलने घटना रही होगी, और शायद उसने अपने पूरे जीवन में फिर से वह पाप नहीं किया होगा।
- दया के विभिन्न रूप।
1) अनंत क्षमा।
जिन लोगों ने यीशु मसीह को अपने व्यक्तिगत उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया, उन्होंने पहले से ही परमेश्वर की बड़ी दया प्राप्त की है। उनका अपने पापों के कारण हमेशा के लिए नरक में गिरना और पीड़ित होना तय था, लेकिन यीशु मसीह में विश्वास करके, जिसने पापियों को बचाने के लिए अपना कीमती लहू बहाया, उन्हें बिना कोई कीमत चुकाए माफ कर दिया गया और उन्हें नरक से स्वर्ग में लाया गया।
यहां तक कि आज भी, परमेश्वर पिता, बहुत सी आत्माओं के उद्धार के मार्ग पर आने का इंतजार कर रहे हैं, भले ही वे परमेश्वर के हृदय को तोड़ रहे है, वह उन्हें स्वीकार करता है जब वे पूरे मन से पश्चाताप करें और उसके पास आएं। वह उनके सब पापों को क्षमा करता है और उन्हें स्मरण नहीं रखता (भजन 103ः12 यशा० 1ः18)।
यीशु हमें न केवल सात बार बल्कि सात का सत्तर गुना बार क्षमा करने के लिए कहते हैं (मत्ती 18:22)। अंक 7 सिद्ध संख्या है, और सत्तर गुणा सात का अर्थ है सिद्ध और असीमित क्षमा। और यह कितना बुरा है यदि हम अन्य लोगों की एक छोटी सी गलती को क्षमा नहीं कर सकते हैं और हम मृत्यु का सामना करने के लिए नियत थे, तो हमारे सभी पापों को बिना किसी कीमत के क्षमा कर दिए जाने के बाद भी हम उन पर न्याय और निंदा करते हैं?
भले ही हमें दूसरों के कारण बहुत बड़ा नुकसान हो, हमें उन्हें क्षमा करने, समझने और स्वीकार करने में सक्षम होना चाहिए, ताकि हम अपने हृदय को विषाल बना सकें। यदि हम मे दया हो तो हम कभी किसी से घृणा नहीं करेंगे और न ही किसी के प्रति कठोर भावना रखेंगे। भले ही दूसरे लोग परमेश्वर की दृष्टि में कुछ बुरा कर रहे हों, हमें उन्हें दंडित करने के बजाय प्रेम से सलाह देने में सक्षम होना चाहिए।
भले ही कोई लीडर अपने लोगों के साथ कुछ गलत करता हो, फिर भी कार्यकर्ताओं को अपने लीडर का नम्रता से अनुसरण करने और प्रेम से उसके लिए प्रार्थना करने में सक्षम होना चाहिए (1 पतरस 2:18)। जब अधीनस्थ अपने लीडर के साथ कुछ गलत करते हैं, तो लीडर को इसे केवल शांति के लिए नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उन्हें सत्य को सही ढंग से समझने में मदद करनी चाहिए। यह दया का कार्य है।
चाहे हम किसी भी तरह की स्थिति का सामना करें, हमें दूसरों के दृष्टिकोण को समझना चाहिए और उनके लिए प्रार्थना करनी चाहिए और उन्हें प्रेम से सलाह देनी चाहिए जिससे हम अपना जीवन दे सकें।
२) प्रेम के साथ दया की सजा।
दंड की दया घृणा या निंदा के साथ नहीं की जाती है। यह प्रेम से उत्पन्न होता है। हम सजा पाते हैं क्योंकि हम परमेश्वर की प्रिय संतान हैं। परमेश्वर सजा के द्वारा हमें पापों से फिरने और सत्य का अभ्यास करने में मदद करता है (इब्रानियों 12:6-8)।
नीतिवचन 13:24 कहता है, जो बेटे पर छड़ी नहीं चलाता वह उसका बैरी है, परन्तु जो उस से प्रेम रखता, वह यत्न से उस को शिक्षा देता है। हालांकि, प्रेम के बिना सजा एक दयालु कार्य नहीं है। इस तरह के दंड घृणा से आते हैं, और इस प्रकार वे दंडित करने वाले को नहीं बदल सकते। चाहे हमें किसी को सजा देनी ही क्यों न पड़े, यह दण्ड की दया है जो परमेश्वर चाहता है।
बाइबल विस्तार से बताती है कि कैसे हमें विश्वास में अपने भाइयों को सलाह देनी चाहिए जब वे पापों को करते है (मत्ती 18ः15-17)। सबसे पहले, हमें उन्हें प्रेम से व्यक्तिगत रूप से सलाह देनी होगी। अगर वह नहीं सुनता है, तो हमें चर्च में उसके समूह के लीडर को सूचित करना चाहिए। अगर वह अभी भी नहीं सुनता है, तो हमें चर्च को सूचित करना होगा ताकि उसे बचाया जा सके। यदि वह कलीसिया की नहीं सुनता है, तो हमें उसे एक अविश्वासी समझना चाहिए।
3) दान के कार्यों में दया।
परमेश्वर की संतान जरूरतमंद लोगों की मदद करने की दया दिखाने के लिए बाध्य हैं। जब विश्वास में भाई गरीबी के कारण पीड़ित हैं, तो यह दया नहीं है यदि हम वास्तविक कार्यों में उनकी मदद नहीं करते हैं, बस उनके लिए खेदित महसूस करते हैं। दान के कार्य में दया वास्तव में हमारे पास जो कुछ है उसे बांटना है जब भाइयों को आवश्यकता होती है (याकूब 2:15-16)।
हमें दूसरों की मदद करते समय एक बात याद रखनी होगी। यह है कि हमें उन लोगों की मदद नहीं करनी चाहिए जो अपने पापों के लिए परमेश्वर की सजा के कारण मुष्किलों में हैं। यह हमारे लिए मुश्किलें पैदा करना है। साथ ही अगर स्वस्थ लोग सिर्फ आलसी हैं और काम नहीं करते हैं, तो उनकी मदद करना भी सही नहीं है।
यह उन लोगों के साथ भी है जो आदतन मदद मांगते हैं, हांलाकि वे स्वयं मदद कर सकते है। अगर हम ऐसे लोगों की मदद करते हैं, तो उन्हें और अधिक अक्षम और आलसी बनाना है। इसलिए हमें न केवल जरूरतमंदों की अंधाधुंध मदद करनी चाहिए, बल्कि उचित विवेक भी रखना चाहिए, ताकि हमें किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े।
निस्सन्देह, हमें अविश्वासियों की भी मदद करनी चाहिए। हमें कभी भी किसी से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए और न ही किसी का तिरस्कार करना चाहिए। हमें दूसरों को अपने से बेहतर समझना चाहिए और उनके साथ दयालुता से पेश आना चाहिए। कुछ लोग दूसरों के दबाव के कारण दूसरों की मदद करते हैं, लेकिन हम जानते हैं कि हमें दूसरों के लिए सच्चे प्रेम से उनकी मदद करनी चाहिए। यही सच्ची दया है और परमेश्वर ऐसे लोगों को आशीष देते हैं।
दयावंत के लिए आशीषे।
मत्ती 5रू7 कहता है, धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
यदि हम उन लोगों पर भी दया करते हैं जो हमें नुकसान पहुंचाते हैं या हमें कठिन समय देते हैं, तो परमेश्वर हम पर दया करेंगे जब हम कठिनाई में होंगे या जब हम अनजाने में गलती करेंगे और दूसरों को नुकसान पहुंचाएंगे।
प्रभु की प्रार्थना कहती है, और जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियो को भी क्षमा किया है, वैसे ही हमारे भी अपराध क्षमा कर (मत्ती 6:12)।
प्रेरितों के काम 9 में तबीता दयालुता और दान के कार्यों से भरपूर थी, जो उसने लगातार किए। दूसरों की मदद करते हुए, वह अपने शरीर की परवाह किए बिना बीमारी से मर गई, लेकिन जिन लोगों ने उससे मदद प्राप्त की, उन्होंने पतरस से उसके लिए प्रार्थना करने को कहा, और उसे फिर से जीवित कर दिया गया। उसका जीवन परमेश्वर की दया से बढ़ाया गया था।
जब हम बीमार और जरूरतमंद लोगों पर दया करते हैं, तो परमेश्वर हमें धन और स्वास्थ्य की आशीष देंगे। यदि हम दूसरों पर दया करते हैं, तो परमेश्वर हमें हमारे अधर्म को क्षमा करेगा, हमारी आवश्यकताओं को पूरा करेगा, और हमारी कमजोरियों को स्वास्थ्य में बदल देगा। यह वह आशीष है जो हमें तब मिलती है जब हम परमेश्वर की दया प्राप्त करते हैं।
प्रिय भाइयों और बहनों, आप अपनी दया की सुंदर सुगंध के माध्यम से बहुत से लोगों को आराम और जीवन प्रदान कर सकते हैं और परमेश्वर की आषीषों से भरपूर जीवन जी सकते हैं, मैं प्रभु के नाम से यह प्रार्थना करता हूं।
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