पवित्र आत्मा के 9 फलो को कैसे प्राप्त करें ?
“परन्तु आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विष्वास, नम्रता, और संयम है; ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था नहीं।“ गलातियो 5ः22-23
प्रेरित पौलुस एक रूढ़िवादी यहूदी था। हालाँकि, वह दमिश्क के रास्ते में प्रभु से मिला और उसने पश्चाताप किया। उसे सुसमाचार की सच्चाई को समझने का मौका नहीं मिला , जो कि हम यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा उद्धार प्राप्त करते हैं। परन्तु पवित्र आत्मा प्राप्त करने के बाद, उसने अन्यजातियों के लिए सुसमाचार प्रचार का नेतृत्व किया।
पवित्र आत्मा के 9 फल गलातियों अध्याय 5 में लिखे गए हैं, जो पौलुस की पत्रियों में से एक है। जब हम गलातियों को लिखे गए पत्र की सामाजिक पृष्ठभूमि को समझते हैं, तो हम आत्मा के फलों को उत्पन्न करने के महत्व को समझ सकते हैं।
- आपको स्वतंत्र होने के लिए बुलाया गया
गलातिया वह स्थान था जहाँ वह अपनी पहली मिशनरी यात्रा के लिए गया था। यहूदी आराधनालय में, उसने मूसा के कानून का प्रचार नहीं किया बल्कि यीशु मसीह के सुसमाचार का प्रचार किया। उसने निम्नलिखित चिन्हो के साथ अपने वचन की पुष्टि की और कई आत्माएं जीती गईं। गलातिया के कुछ विश्वासियों ने उससे इतना प्रेम किया और उस पर इतना भरोसा किया कि वे उसके लिए अपनी आँखें भी दे देते (गला० 4ः15)।
जब वह अन्ताकिया वापस आया, तो गलातिया की कलीसिया में एक समस्या थी। यहूदिया से आए कुछ लोगों ने तर्क दिया कि यदि उनका खतना नहीं हुआ तो अन्यजातियों को बचाया नहीं जा सकता। तकरार और बहस छिड़ गई। अन्ताकिया की कलीसिया ने बरनबास और पौलुस को सब प्रेरितों के बीच इस विषय पर निर्णय करने के लिये यरूशलेम भेजा।
प्रेरितों के काम अध्याय 15 मे यरूशलेम परिषद को विस्तार से बताता है। यीशु के चेले, प्राचीन और चर्च के प्रतिनिधि इकट्ठे हुए और इस मामले पर लंबी चर्चा की। उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि वे अन्यजातियों को केवल 4 चीजों से प्रतिबंधित करेंगे। अन्यजाति विश्वासियों के लिए मूसा की व्यवस्था का पालन करना बहुत कठिन होगा, और इस प्रकार, उन्होंने अधिक स्वतंत्रता की अनुमति दी ताकि वे यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा बचाए जा सकें।
निष्कर्ष अन्यजातियों विश्वासियों के साथ चर्चों तक पहुँचाया गया था, लेकिन जो लोग वास्तव में सुसमाचार की सच्चाई को नहीं समझते थे, वे तर्क देते रहे कि उन्हें मूसा की व्यवस्था का पालन करना होगा। यहाँ तक कि कुछ झूठे भविष्यद्वक्ता भी थे जिन्होंने मूसा की व्यवस्था नहीं सिखाने के कारण पौलुस की निंदा की।
जब गलातिया चर्च इस समस्या से जूझ रहा था, तो पॉलुस ने एक पत्र लिखा और एक मसीही की सच्ची स्वतंत्रता के बारे में बताया। “तुम ने आत्मा को, व्यवस्था के कामों से पाया, या विश्वास के समाचार से पाया? “ आत्मा की रीति पर आरम्भ करके अब शरीर की रीति पर अन्त करोगे? “ “क्या वह जो तुम्हें आत्मा देता है, और तुम्हारे बीच चमत्कार करता है, वह व्यवस्था के कामों से करता है, या विश्वास के सुसमाचार से ऐसा करता है?“
उसने सुसमाचार की सत्यता का बचाव किया और इस बात पर जोर दिया कि अन्यजातियों का खतना नहीं करने का कारण यह था कि हृदय का खतना अधिक महत्वपूर्ण है।
उसने षरीर और आत्मा की इच्छाओं, और षरीर के कार्यों और आत्मा के फलों के बारे में समझाया, ताकि वे समझ सकें कि वे उस स्वतंत्रता का उपयोग कैसे कर सकते हैं जो उन्होंने सुसमाचार के माध्यम से प्राप्त की थी।
- आत्मा के द्वारा चलो
क्या कारण है कि परमेश्वर ने उन्हें मूसा की व्यवस्था दी? ऐसा इसलिए है क्योंकि लोगों को यह नहीं पता चलता कि व्यवस्था के बिना पाप क्या हैं। वे समझ सकते थे कि पाप क्या हैं और पाप की समस्या को हल कर सकते थे ताकि वे परमेश्वर की धार्मिकता तक पहुँच सकें। हालाँकि, हम केवल व्यवस्था द्वारा पाप की समस्या को पूरी तरह से हल नहीं कर सकते हैं। इस कारण यीशु इस पृथ्वी पर आए जब समय आया कि हम विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जा सकें।
गलातियो 3ः13-14 कहता है, मसीह ने जो हमारे लिये श्रापित बना, हमें मोल लेकर व्यवस्था के श्राप से छुड़ाया क्योंकि लिखा है, जो कोई काठ पर लटकाया जाता है वह श्रापित है।
यह इसलिये हुआ, कि इब्राहिम की आशीष मसीह यीशु में अन्यजातियों तक पंहुचे, और हम विश्वास के द्वारा उस आत्मा को प्राप्त करें, जिस की प्रतिज्ञा हुई है॥
इसका मतलब यह नहीं है कि व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया था। यीशु ने मत्ती में 5ः17 मे कहा “ यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों को लोप करने आया हूं। और पद 20 में लिखा है, क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि यदि तुम्हारी धामिर्कता शास्त्रियों और फरीसियों की धामिर्कता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे॥
पौलुस ने गलातिया की कलीसिया के विश्वासियों से कहा, हे मेरे बालको, जिनके साथ मैं फिर परिश्र्म में हूं जब तक कि मसीह तुम में न उत्पन्न हो जाए। और उसने यह कहकर निष्कर्ष निकाला, “… प्रेम से एक दूसरे की सेवा करो। क्योंकि सारी व्यवस्था इस एक ही बात में पूरी हो जाती है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।
पर यदि तुम एक दूसरे को दांत से काटते और फाड़ खाते हो, तो चौकस रहो, कि एक दूसरे का सत्यानाश न कर दो॥
अब, प्रेम के द्वारा एक दूसरे की सेवा करने और हम में मसीह का रूप धारण करने के लिए हमें क्या करना होगा? हमें आत्मा के अनुसार चलना है, तो हम शरीर की अभिलाषा को पूरा नहीं करेंगे। यदि हम आत्मा के 9 फल उत्पन्न करते हैं, तो हम में मसीह का निर्माण हो सकता है।
हम यीशु मसीह के अनुग्रह से मुक्त हो गए हैं जो क्रूस पर मरा, और अब हमें आत्मा के फल को फिर से पाप का दास नहीं बनने के लिए उत्पन्न करना होगा।
यदि हम पाप करने की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं और फिर से प्रभु को सूली पर चढ़ाते हैं, तो हम स्वर्ग के राज्य के वारिस नहीं होंगे। दूसरी ओर, यदि हम आत्मा के अनुसार चलते हैं और आत्मा के फल उत्पन्न करते हैं, तो परमेश्वर रक्षा करेगा हमें हमारे विरोधी शैतान से, और हम प्रार्थना में जो कुछ भी मांगेंगे वह हमें प्राप्त होगा।
- प्रेम आत्मा के 9 फलों में पहला फल है ।
9 फलों में पहला फल प्रेम है। जिस हद तक हम प्रेम को जोतते हैं, हमें वह आनंद भी मिलेगा जिसके साथ हम किसी भी परिस्थिति में आनन्दित हो सकते हैं। फिर, हम सबके साथ शांति बनाए रखेंगे। जिस प्रकार परमेश्वर के साथ, स्वयं के साथ, और अन्य सभी के साथ हमारी शांति है, उसी प्रकार हम भी धीरज का फल उत्पन्न करेंगें।
जैसे हम दूसरों के साथ धीरज रखते हैं, हम दया का फल त्पन्न करेंगे। हम उन पर भी दया करेंगे जिन्हें हम बिल्कुल नहीं समझ सकते। भले ही वे सामान्य ज्ञान की सीमाओं से परे कुछ भी करें, हम उस व्यक्ति को समझेंगे और स्वीकार करेंगे।
दया करने वालों की भी भलाई होगी। वे नम्रता से दूसरों को अपने से बेहतर समझेंगे। वे न केवल अपने निजी हितों के लिए, बल्कि दूसरों के हितों की भी खोज करेंगे। वे उन आत्माओं को नहीं तोड़ेंगे जो कुचले हुए सरकंडे की तरह हैं, और वे उन आत्माओं को नहीं बुझाऐंगे जो सुलगती हुई बत्ती की तरह हैं। यदि हम ऐसी भलाई को उत्पन्न करते हैं, तो हम अपनी राय पर जोर नहीं देंगे, बल्कि परमेश्वर के सभी घराने में नम्र और विश्वासयोग्य बनेंगे।
जो कोमल होते हैं वे किसी के लिए ठोकर नहीं बनते, बल्कि सबके साथ शांति रखते हैं। वे किसी का न्याय नहीं करते बल्कि उदार हृदय से सभी को स्वीकार करते हैं और समझते हैं।
प्रेम, आनंद, शांति, धीरज, कृपा, भलाई, विश्वास और नम्रता के इन फलों को उत्पन्न करने के लिए आत्म-संयम होना चाहिए। भलाई की बहुतायत अच्छी है, लेकिन सब कुछ सामंजस्य में होना चाहिए। जब हम अच्छी बातों में भी आत्म-संयम का प्रयोग करते हैं और आत्मा के अनुसार चलते हैं, तो परमेश्वर सभी बातों को भलाई के लिए प्रेरित करेगा।
- ऐसी चीजों के खिलाफ कोई व्यवस्था नहीं है
पवित्र आत्मा परमेश्वर के बच्चों को सत्य की ओर ले जाता है ताकि वे सच्ची स्वतंत्रता और खुशी का आनंद उठा सकें। सच्ची स्वतंत्रता पाप और शैतान से मुक्ति है जो हमें सृष्टिकर्ता परमेश्वर की सेवा करने से रोकती है। यह परमेश्वर के साथ चलने से मिलने वाली खुशी है।
आशीश के इस द्वार को खोलने की कुंजी आत्मा का फल है। हालाँकि, चाबी अपने आप दरवाजे नहीं खोलेगी। याकूब 1ः25 कहता है, पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर नहीं, पर वैसा ही काम करता है। जब हम पवित्र आत्मा की सहायता से वचन को व्यवहार में लाते हैं तो हम आशीषें प्राप्त कर सकते हैं।
मसीह में, प्रिय भाइयों और बहनों, परमेश्वर के प्रेम और आशीषों को प्राप्त करने के लिए, यह आवश्यक है कि हम आत्मा के फलों को ध्यान में रखें और उन्हें अपने हृदय में जोते। यदि हम पवित्र आत्मा की सहायता से आत्मा के फल बहुतायत से प्राप्त करते हैं, तो हम न केवल सच्ची स्वतंत्रता का आनंद लेंगे बल्कि पवित्र आत्मा की आवाज को भी स्पष्ट रूप से सुनेंगे। हम कोमल ढंग से निर्देशित होंगे और सभी चीजों में समृद्ध होंगे।
ऐसा करने से, आप नए यरूशलेम शहर में सूर्य की तरह प्रकाश की महिमा प्राप्त कर सकते हैं, मैं यह प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं।
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