क्रूस का संदेश (19) क्रूस पर यीशु के अंतिम सात वचन (3) Message of Cross (19) Last seven words of Jesus on Cross (3)
नौवें घंटे में, यीशु ने जोर से चिल्लाकर कहा, एली, एली, लमा शबक्तनी ?(eli eli lama sabachthani) ’यानी मेरे परमेश्वर तू ने मुझे क्यों छोड़ दिया?’ (मत्ती 27ः46)
इस के बाद यीशु ने यह जानकर कि अब सब कुछ हो चुका इसलिये कि पवित्र शास्त्र की बात पूरी हो उसने कहा, मैं प्यासा हूं(I am Thirst)। वहां एक सिरके से भरा हुआ बर्तन धरा था, सो उन्होंने सिरके में भिगोए हुए स्पंज को जूफे पर रखकर उसके मुंह से लगाया। जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिए। (यूहन्ना 19ः28-30)
यीशु, जो मानव जाति के उद्धारकर्ता के रूप में इस संसार में आया, कुछ वचनों को कहा जो उसने क्रूस पर अपनी अंतिम सांस लेने से पहले कहे और उन्हें क्रूस पर अंतिम सात वचनों(Last seven words of jesus on cross) के रूप में जाना जाता है। वह क्रूस पर अपने अंतिम क्षण तक भी मनुष्यों के जीवन में आत्मिक जीवन को बोना चाहता था। आइऐं, आज हम यीशु के क्रूस पर कहे चैथे, पाँचवें और छठे वचनों के बारे में जाने।
चैथा वचन – एली, एली, लमा शबक्तनी।(eli eli lama sabachthani)
यीशु के वचन एली, एली, लमा शबक्तनी(eli eli lama sabachthani), मत्ती 27ः46 में, जब अनुवाद किया जाता है, तो इसका अर्थ है, हे मेरे परमेश्वर , हे मेरे परमेश्वर , तूने मुझे क्यों छोड़ दिया?
यीशु ने इन वचनों को परमेश्वर से कड़वी शिकायत के रूप में या मौखिक रूप से अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए नहीं कहा। वास्तव में, इन वचनों में अंतर्निहित आत्मिक अर्थ का महान महत्व है।
उस समय, छह घंटे हो गए थे, जब यीशु को पहली बार पकड़ा गया था और क्रूस पर लटकाया गया था (मरकुस 15ः25-34)। भले ही उसके पास पर्याप्त ताकत नहीं थी फिर भी वह ऊँची आवाज में चिल्लाया, यीशु ने सभी लोगों को याद दिलाने के लिए ऐसा किया था और उन्हें यह समझने दिया कि परमेश्वर ने उसे क्यों त्याग दिया और उसे क्रूस पर चढ़ना पड़ा।
यीशु मानव जाति कोे पापों से छुड़ाने के लिए( To redeem human from sins) क्रूस पर चढ़ाया गया था। जैसा कि सभी मानवजाति को व्यवस्था के शाप के अनुसार परमेश्वर द्वारा त्यागने के लिए नियत किया गया था, यीशु को हमारी ओर से शाप दिया गया और त्याग दिया गया था। सभी लोगों को यह याद दिलाने के लिए, यीशु ऊँची आवाज में चिल्लाया।
इसके बाद, यीशु “ऊँची आवाज में चिल्लाया” क्योंकि अनगिनत लोग अब भी संसार से मित्रता कर रहे हैं और मृत्यु के मार्ग पर चल रहे हैं, भले ही परमेश्वर ने पापियों के लिए अपने इकलौते पुत्र को छोड़ दिया हो। यीशु चाहता था कि सभी आत्माओं को इस कारण से अवगत कराया जाऐं कि उसे क्यों क्रूस पर चढ़ाया गया, उसे अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करें, और अनन्त जीवन प्राप्त करें। इन कारणों से यीशु ने ऊँची आवाज में कहा एली, एली, लमा शबक्तनी।
यदि हम हृदय से यह विश्वास करते हैं कि यीशु परमेश्वर द्वारा त्यागा गया था और हमारे पापों के कारण क्रूस पर चढ़ाया था, तो हम में से प्रत्येक को अब पाप के बीच नहीं रहना चाहिए, लेकिन पवित्र जीवन जीना चाहिए और उसकी संतान बनना चाहिए, जो परमेश्वर को पिता कह सकता है। हमें उन सभी आत्माओं को उद्धार के मार्ग पर ले जाने के लिए परिश्रम करते हुए क्रूस का संदेश का भी प्रचार करना चाहिए।
पाँचवाँ वचन, मैं प्यासा हूँ।(I am Thirst)
जब किसी व्यक्ति का अधिक मात्रा में लहु बहता है, तो वह अत्यधिक प्यास से पीड़ित हो जाता है। अब, आप कल्पना कर सकते हैं कि हमारे यीशु को कितनी प्यास लगी होगी क्योंकि वह घंटों तक चिलचिलाती धूप के तहत इज्रराइल की सूखी हवा में क्रूस पर लटकाया गया था? फिर भी, यीशु केवल शारीरिक प्यास से पीड़ित नहीं था, उसके वचनों में आत्मिक अर्थ छिपा हुआ है, मैं प्यासा हूं। उसके वचन आत्मिक वचन हैं, और हम में से प्रत्येक को आग्रह करता है कि हम उसके लहु की कीमत वापस चुका कर उसकी प्यास बुझाऐं।
तो फिर, हम “यीशु के खून की कीमत कैसे वापस चुका सकते हैं”? जैसा कि यीशु ने सभी मनुष्यों, पापियों को बचाने के लिए अपना लहु बहाया, हमें चाहिए कि हम उन सभी लोगों को सुसमाचार का प्रचार करें, जो नर्क की ओर जा रहे है। इसके अलावा अविश्वासियों को सीधे रूप से सुसमाचार फैलाने के लिए, हम अप्रत्यक्ष रूप से आत्माओं के उद्धार के लिए प्रार्थना करने और मिशन के काम के लिए भेंटे देकर सुसमाचार को फैला सकते हैं।
जब यीशु ने कहा, मैं प्यासा हूँ, तो पास के कुछ लोगों ने खट्टा दाखरस से भरा एक स्पंज को एक जूफे पर रखा और उसे उसके मुँह तक बढ़ा दिया। यीषु ने खट्टा दाखरस अपनी प्यास बुझाने के लिए नहीं लिया, लेकिन उन्होंने पुराने नियम (भजन संहिता 69ः21 ) की भविष्यवाणी के अनुसार आत्मिक व्यवस्था को पूरा करने के लिए खट्टे दाखरस का स्वाद स्वीकार किया, उन्होंने मुझे पीने के लिए सिरका दिया।
यीशु का खट्टा दाखरस प्राप्त करना इस तथ्य पर निर्भर करता है कि यीशु ने खट्टा दाखरस पिया और उसने हमारे लिए संभव किया कि हम नया दाखरस पी सके। खट्टा दाखरस, पुराने नियम की व्यवस्था का प्रतीक है जबकि नया दाखरस यीशु के द्वारा पूरी की गई नए नियम की प्रेम की व्यवस्था का प्रतीक है।
पुराने नियम की व्यवस्था के अनुसार, सभी पापियों को उनके पापों के लिए दंडित किया जाना था और उनके पापों के छुटकारे को जानवरों के लहु के द्वारा पूरा किया गया था, जो कि वे परमेश्वर को बलिदान करते थे। जैसा कि यीशु स्वयं एक प्रायश्चित का बलिदान बना और हमें क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा व्यवस्था के शाप से छुटकारा दिलाया, हालांकि यीशु ने हमारे लिए खट्टा दाखरस लिया।
इसलिए, जब हम यीशु मसीह में विश्वास करते हैं और अपने पापों के लिऐ हृदय से पष्चाताप करते हैं, तो हमारे पापों को क्षमा कर दिया जाएगा। यह नई दाखरस पीना है और इस तथ्य के बारे में हमें बताने के लिए, यीशु ने कहा, मैं प्यासा हूँ और स्वयं खट्टा दाखरस लिया।
छठा वचन, पूरा हुआ।
यूहन्ना 19ः30 में लिखा है, जब यीशु ने वह सिरका लिया, तो कहा पूरा हुआ और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिया। इसके द्वारा यीशु ने जताया कि कैसे उसने मानव जाति के छुटकारे के प्रावधान को पूरा कर और प्रेम से व्यवस्था को पूरा किया।
पाप की मजदूरी मृत्यु है, (रोमियों 6ः23)। सभी पापियों को मृत्यु की सजा प्राप्त करना और नर्क जाना है। परमेश्वर की संतान को लंबे समय तक, मवेशियों या भेड़ों को मारना और अपने पापों की क्षमा के लिए जानवरों के लहु का बलिदान करना पड़ता था, लेकिन यीशु ने खुद को कू्रस पर बलिदान करने के द्वारा हम पापियों को व्यवस्था के श्राप से छुड़ा लिया। (इब्रानियों 7ः27)।
यीशु ने मानव जाति को उनके पापों से छुड़ाने के लिए जो कदम उठाए थे, वह उनके महान परिमाण के अकल्पनीय और अकथनीय प्रेम द्वारा पूरे हुए थे। परमेश्वर का कीमती पुत्र इस संसार में आया, उसने खुद को पापियों द्वारा गिरफ्तार किए जाने और डराए जाने की पीड़ा को सहन किया, जिसके सिर पर कांटों का मुकुट था, और उसके हाथों और पैरों में कीले ठोकी गई थी ।
हमें यीशु मसीह में अपने विश्वास के द्वारा स्वर्ग में प्रवेश करने का अधिकार प्राप्त हुआ, जिसने हमारे लिए अपने प्रेम और बलिदान के द्वारा मृत्यु को मात दी। फिर, हम क्या करें? जैसा कि यीशु ने प्रेम और बलिदान के साथ परमेश्वर के सभी प्रवाधानांे को पूरा किया और राजाओं का राजा और प्रभुआंे का प्रभु बन गया, हम जो उनके द्वारा बचाए गए है, हमे भी परमेश्वर की सभी इच्छाओं को पूरा करना चाहिए।
हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा सिद्ध पवित्रीकरण और सिद्ध विश्वास है। हमें पवित्र आत्मा के नौ फलों को उत्पन्न करना, आत्मिक प्रेम को साधना, धन्य वचन को दर्षाना चाहिए। जैसा कि उसने हमें बताया, हम पृथ्वी के हर कोने में परमेश्वर के गवाह बनने और आत्माओं के उद्धार में हर संभव प्रयास करें। उसके बाद ही हम अपनी तैयारी दुल्हन के रूप में सकते हैं, हम प्रत्येक परमेश्वर द्वारा दिए गए कर्तव्यों को पूरी तरह से पूरा करे, और उसके आगमन के दिन उससे हम अंगीकार करे पूरा हुआ।
मसीह में भाइयों और बहनों, यीशु के क्रूस पर अंतिम सात वचनों के आत्मिक अर्थ(Spiritual meaning of Last seven words of jesus) को समझने के द्वारा और उन्हें अपने हृदय में उकेरते हुए, मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप में से प्रत्येक एक ऐसे जीवन का नेतृत्व करें जो परमेश्वर की दृष्टि में उचित है और सबसे सुंदर स्वर्गीय निवास स्थान में हमेशा प्रभु के साथ रहें।
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