क्रूस का संदेश (17) क्रूस पर यीशु के अंतिम सात वचन (1)Message of Cross (17) Last Seven Words of Jesus on cross (1)
“पिता, उन्हें क्षमा कर क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं” (लूका 23ः34)।
मैं तुझसे सच कहता हू कि, आज ही तू मेरे साथ स्वर्ग में होगा।” (लूका 23:43)।
यीशु ने क्रूस पर अंतिम सांस लेने से कुछ देर पहले कुछ वचनों को बोला और उन्हें क्रूस पर अंतिम सात वचनों के रूप में जाना जाता है।
इस संस्करण में, पहले और दूसरे वचन को समझाया जाऐगा।(Last seven words of Jesus on cross)
पहला वचन, “पिता, उन्हें क्षमा कर क्योंकि वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं।”
यीशु, परमेश्वर के पुत्र ने, हमारे पापों के कारण क्रूस की क्रूर सजा को सहा। सभी मानव जाति की ओर से, जिन्हें मृत्युदंड मिलना था, यीशु को सभी प्रकार के कष्ट और दुःख मिले। इसीलिए, इस ज्ञान के बिना रोमन सैनिकों और इज्रराइल के लोगों ने यीशु की अवमानना करने में संकोच नहीं किया और उसे अपमानित किया, जैसे कि वह वास्तव में गलत काम करने वाला था जब वह क्रूस पर लटका हुआ था।
फिर भी, यीशु ने न केवल चुपचाप सहा, बल्कि परमेष्वर से उन लोगों की क्षमा के लिए प्रार्थना की, जो उसे मारने पर जोर दे रहे थे। इस बात को हम अपने हृदय में रखें, कि यह प्रार्थना, न केवल यीशु के क्रूस के समय उपस्थित भीड़ के लिए थी बल्कि यह अंधकार में रहने वाले सभी मानव जाति के लिए भी थी। यीशु की प्रेम की प्रार्थना के कारण ही आज अनगिनत लोग उद्धार प्राप्त करने में सक्षम हैं।
वो दोष रहित जिसने क्रूस पर अपने अंतिम क्षणों में पापियों के लिए प्रेम की प्रार्थना की। वह चाहता है कि आज परमेश्वर की सभी संतान सभी लोगों को प्रेम करें और क्षमा करें। उसी कारण से, उसने हमें प्रार्थना करना सिखाया है, प्रभु की प्रार्थना में, और तू भी हमारे अपराधो को क्षमा कर, जैसे हमने अपने अपराधियों को क्षमा किया है (मत्ती 6:12) । यहां तक कि ऐसे समय में जब हम अनावश्यक रूप से सताए जाते हैं, यीशु नहीं चाहते हैं कि हम बुराई या असहनीय भावनाओं पर प्रतिक्रिया दें, बल्कि इसके बजाय उन लोगों के प्रति अच्छा व्यवहार करें जो हमें सताते हैं। (मत्ती 5:44-45)।
इसलिए, यीशु के सदृष होने के लिए, जो उन पापियों से भी प्रेम करता था, जिन्होंने उसे क्रूस पर चढ़ाया और उसका उपहास किया, हमें अपने भाइयों और बहनों से प्रेम करना चाहिए और यहां तक कि अपने दुश्मनों को क्षमा और प्रेम करना चाहिए।
दूसरा वचन, मैं तुमसे सच कहता हूँ, आज तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।
दो अपराधी थे जिन्हें यीशु के दोनों ओर क्रूस पर चढ़ाया जा रहा था। उनमें से एक ने यीशु का मजाक उड़ाया, लेकिन दूसरे अपराधी ने पहले को फटकार लगाई। फिर उसने यीशु से विनती की। यीशु से, अपराधी ने कहा, जब तू अपने राज्य में आये तो मेरी सुधि लेना। इस पर, यीशु ने जवाब दिया और अपराधी से वायदा किया, मैं तुझसे सच कहता हूं, आज तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा।
बोले गए दूसरे वचन में कई आत्मिक अर्थ हैं, जिनमें से पहला है स्वर्गीय राज्य का स्वर्गलोक। 2 कुरिन्थियों 12:2-4 में, प्रेरित पौलुस ने लिखा है कि स्वर्गलोक में तीसरे स्वर्ग तक गया … और बातें सुनी जो कहने की नही। बाइबल के कई अन्य हिस्सों में (नहेमायाह 9:6 सहित जो हमें “स्वर्गो, स्वर्गो का स्वर्ग” बताता है, वहाँ “सबसे ऊँचे स्वर्ग” और उसी तरह का उल्लेख हैं। हमारी नग्न आँखों से दिखने वाले षारीरिक स्वर्ग (आकाश) के अलावा, आत्मिक क्षेत्र के स्वर्ग भी हैं (1 राजा 8ः27 , भजन संहिता 68ः33 )
तीसरा स्वर्ग जिसमें स्वर्गीय राज्य है? स्वर्गलोक सहित कई स्वर्गीय निवास स्थानों में विभाजित है जिसमें प्रेरित पौलुस को उठाया लिया गया था और साथ ही नये यरुशलेम का शहर जो प्रकाशितवाक्य 21:10-11 में वर्णित है। नया यरुशलेम स्वर्गीय राज्य के उच्चतम स्तर पर है और उन लोगों द्वारा बसाया जाएगा जो हमारे प्रभु के सदृष हो गये है, सभी पाप और बुराई को पूरी तरह से निकाल फेका है, और सभी चीजों में विष्वासयोग्य रहे हैं।
जिस अपराधी को यीशु के बगल में क्रूस पर चढ़ाया गया, उसकी मृत्यु के कुछ समय पहले ही उसने प्रभु को ग्रहण किया था। इसलिए, उसके पास अपने हृदय से पाप और बुराई को दूर करने का समय नहीं था और उसने प्रभु के प्रति अपनी विष्वासयोग्यता दिखाने के लिए कुछ भी नहीं किया था उसने केवल मुष्किल से ही उद्धार प्राप्त किया। ऐसे व्यक्ति स्वर्गलोक में प्रवेश करेंगे, स्वर्गीय राज्य में सबसे निचले निवास स्थान में। स्वर्ग और नये यरुशलेम के बीच कई अलग-अलग स्तर के निवास स्थान हैं और प्रत्येक व्यक्ति का निवास स्थान उसकी पवित्रता, विष्वास और विश्वासयोग्यता के परिमाण के अनुसार निर्धारित किया जाऐगा।
परमेष्वर की धार्मिकता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति जो इस संसार में जो कुछ भी बोता है वही काटेगा और उसने जो कुछ किया है उसके अनुसार हर व्यक्ति को प्रतिफल देता है, स्वर्ग के राज्य में रहने के लिए निवास स्थानों को कई अलग-अलग स्तरों में विभाजित किया जाता है। दूसरे शब्दों में, स्वर्ग में रहने का स्थान एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इस आधार पर भिन्न होगा कि प्रत्येक व्यक्ति ने कितना पाप को निकाल फेंका है और हमारे प्रभु के सदृष हो गये है। उसी के परिणामस्वरूप, प्रत्येक स्वर्गीय निवास स्थान की महिमा, प्रतिफल, आनंद और अधिकार एक दूसरे व्यक्ति से अलग- अलग होंगे।
यही कारण है कि 1 कुरिन्थियों 15:41 हमें बताता है, सूर्य का तेज और है, चान्द का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, (क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है)। यदि किसी के पास सच्चा विश्वास है, तो उसे एक बेहतर स्वर्गीय निवास स्थान तक पहुंचने के लिए ईमानदारी से इच्छा करनी चाहिए। जैसा कि मत्ती 11:12 हमें बताता है, “ यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के दिनों से अब तक स्वर्ग के राज्य पर जोर होता रहा है और बलवान उसे छीन लेते हैं। हम में से प्रत्येक जितना ज्यादा षत्रु, दुष्ट और पाप को पराजित करते हैं और प्रभु के सदृष हो जाते हैं, तो हम बेहतर स्वर्गीय निवास स्थान में प्रवेश कर सकते हैं और निवास कर सकते हैं।
यदि हमें ईष्र्या, जलन, न्याय, निंदा, घृणा, विश्वासघात, धोखा देना, लालची स्वभाव, व्यभिचार और इस तरह के पापों के साथ स्वर्ग में प्रवेश करने की अनुमति दी होती, तो स्वर्ग एक पवित्र और आनंदमय निवास स्थान नहीं हो सकता था। इसलिए, हम पाप और बुराई के साथ जो अभी भी हमारे हृदय में बची हुई है स्वर्ग में प्रवेश नहीं कर सकते हैं, लेकिन केवल उसी के साथ जो हमने अपने हृदय में भलाई और आत्मा को जोता है। इसके अलावा, जिन लोगों ने भलाई और आत्मा को एक समान जोता है, वे एक ही निवास स्थान पर रहने के लिए इकट्ठा होंगे। जैसे कोई इस संसार में समान आयु, वर्ग या व्यक्तित्व के लोगों के साथ काम करने और रहने के लिए अधिक सुखद होगा, स्वर्ग में जीवन तब और अधिक आरामदायक और आनंदमय होगा जब वे पवित्रता, विश्वास और जितना वो परमेष्वर के सदृष होगें।
यीशु ने अपने पास क्रूस पर चढ़ाए हुए व्यक्ति से कहा, आज तू मेरे साथ स्वर्गलोक में होगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि यीशु अपराधी के साथ स्वर्गलोक में रहेंगें। यीशु ने अपराधी से यह कहा, क्योंकि वह स्वर्ग के सभी निवास स्थानों का स्वामी है और उसके पुनरुत्थान और स्वर्गारोहण के बाद उन पर शासन करेगा।
इसके अलावा, (आज) का मतलब यह नहीं है कि जिस दिन उसे क्रूस पर चढ़ाया गया था, उस दिन यीशु स्वर्ग गए था। जैसा कि अपराधी विश्वास से उद्धार प्राप्त करने के बाद परमेष्वर की एक संतान बन गया, यीशु उसे बता रहा था कि वह उस पल से जहां भी वह था, उसके साथ रहेगा। इसी तरह, जब हम प्रभु को स्वीकार करते हैं और उद्धार प्राप्त करते हैं, उसी दिन से हमारे प्रभु हमें याद करेंगे और हमेशा हमारे साथ रहेंगे।
तो, यीशु उस दिन कहाँ गया था, जब वह शुक्रवार को वह क्रूस पर मर गया था? मत्ती 12ः40 हमें बताता है, .. वैसे ही मनुष्य का पुत्र तीन रात दिन पृथ्वी के भीतर रहेगा। और इफिसियों 4ः9 हमें याद दिलाता है कि यीशु पृथ्वी के निचले हिस्सों में उतरा। 1 पतरस 3:19 भी हमें बताता है, उसी में उस ने जाकर कैदी आत्माओं को भी प्रचार किया। ध्यान रखें कि क्रूस पर अपने अंतिम सांस लेने के बाद, यीशु स्वर्ग नहीं गया, लेकिन उसी में उस ने जाकर कैदी आत्माओं को भी प्रचार किया।
यहां, कैदी आत्माऐं उन सभी को संदर्भित करती हैं जो उद्धार के लिए योग्य हैं लेकिन यीशु केे क्रूस उठाने और उद्धारकर्ता बनने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गई थी।
मसीह में प्रिय भाइयों और बहनों, इस संसार में अपने जीवन के अंतिम क्षण तक यीशु ने सभी मानव जाति के लिए प्रेम की प्रार्थना की और उस अपराधी के हृदय में स्वर्ग के लिए आशा दी, जिसने उसे स्वीकार किया। मैं प्रभु के नाम से प्रार्थना करता हूं कि आप में से प्रत्येक उसके प्रेम को और अधिक समझकर बलपूर्वक स्वर्गीय बेहतर स्थान को प्राप्त करेंगे।
इसी तरह मानमिन में रेव डाॅ जेराॅक ली की प्रार्थना के द्वारा विभिन्न प्रकार के सामर्थी कार्य प्रगट हो रहे है जैसे कि कैंसर से चंगाई(healed of Cancer) , कोरोना से चंगाई (Healed of Covid-19) , टी.बी. से चंगाई (Healed of Tuberculosis) और भी बहुत प्रकार की बीमारियो से लोगो ने चंगाईयां प्राप्त की ।
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